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छेड़छाड़ का शिकार लड़कियां ही क्यों होती हैं…???

Proud To Be An Indian
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हमारे देश की बात करें तो यहाँ यह एक खास लेकिन आम समस्या हैं. छेड़छाड़ पर हम तभी कुछ ठोस करते दीखते हैं, जब कुछ बहुत ही गंभीर हो चुका होता हैं. अन्यथा इस छेड़छाड़ को एक सामान्य सी बात या रोज-रोज सुनने में आने वाला मामला समझकर इग्नोर कर दिया जाता हैं. छेड़छाड़ की शिकार लड़कियां या महिलाये ही होती हैं. हाँ, अब अपवाद स्वरुप पुरुष भी छेड़छाड़ के शिकार होने लगे हों, तो कुछ अतिश्योक्ति न होगी और इसीलिए थोड़ी संभावना इसके लिए भी रखनी ही होगी. लेकिन हम बात करते हैं लड़कियां या महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ की. छेड़छाड़ आखिर होती क्यों हैं ? विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण तो प्राकृतिक हैं. फिर ये दोनों में पाया जाता है. लेकिन छेड़छाड़ होती है केवल लड़कियां या महिलाओं के साथ, क्यों ? कुछ अपवादों को छोड़ कर यदि देखा जाये तो पुरुष महिलाओं से शारीरिक रूप से ज्यादा ताकतवर होता हैं (जो कि वास्तव में है नहीं) और इसीलिए वह ये सोचता है कि वह लड़कियां या महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करके बखूबी बच भी सकता है. फिर यदि विरोध होता है, तो वह लड़कियां या महिलाओं को काबू कर सकता है. इसके अतिरिक्त हमारा सामाजिक स्तर भी इसमें भूमिका निभाता है. यदि कोई लड़की या महिला हमारे ही गली, मोहल्ले और शहर से ताल्लुक रखती है, तो उसे छेड़ते समय उसके सामाजिक स्तर का ख्याल पुरुष अवश्य रखता है. क्योंकि परिणाम इस बात पर एक हद तक निर्भर हो जाता है. यदि कोई पुरुष कुछ सुन्दर लड़कियों या महिलाओं का समूह देख बहुत ज्यादा आकर्षित भी होता है, तो यह तय है कि वह उन्हें छेड़ने कि कतई गलती नहीं करेगा. लेकिन यदि उसी पुरुष के पास उनसे ज्यादा बड़ा समूह होगा, तो वह दुगनी कोशिश करेगा. और इस बार वह सामाजिक स्तर को भी नजरंदाज करेगा. छेड़छाड़ को किसी भी रूप में सही नहीं कहा जा सकता है. छेड़छाड़ आज इसलिए और गंभीर समस्या हो गयी है, क्योंकि यह हिंसक ज्यादा होती जा रही है. वहीँ दूसरी ओर लड़कियां या महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के लिए महिलाओं के कपड़ों पर भी आये दिन सवाल उठाए जाते हैं. वस्त्र किसी के भी लिए निजी सवाल होता है. लेकिन हाँ, जब हम सामाजिक प्राणी के रूप में बात करते हैं तो हमें थोडा ध्यान अवश्य रखना होगा. फैशन के नाम पर शरीर दिखाना ठीक कैसे हो सकता है? लेकिन सुन्दर दिखने और आराम प्राप्ति के लिए हम अपनी पसंद के कपडे पहन ही सकते हैं. हममे से अधिकांश लोग ये महसूस करते हैं की जब वे अपने घर की महिलाओं के साथ होते हैं तब बुरी नजर डालने वाले बहुत से दुष्ट दूर से बुरी नजर तो डालते हैं, लेकिन पास आकर उन्हें छेड़ने का दुस्साहस नहीं करते. यही कारन हैं ही हममे में बहुत से लोग अपने घर की लड़कियों और महिलाओं को अकेले नहीं भेजना चाहते. लेकिन समय और परिस्थितियां हमारे वश में नहीं होती हैं. नैतिकता एक बड़ा रोल अदा करता है. कुछ वर्ष पूर्व तक वर्तमान सी परिस्थितियां नहीं थी. छेड़छाड़ तब ऐसे भयावह रूप में नहीं था. जिस तेजी से समाज से नैतिकता का ह्रास हुआ है, वह अधिक जिम्मेदार माना जाना चाहिए. हम देखते हैं की हम अपने बनाये कानूनों से जल्द व् ठीक से बाज नहीं आते लेकिन प्राकृतिक कानून हमें ऐसा नहीं करने देते हैं. यानि जब प्रकृति हम पर अपना शिकंजा कसती है, तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता है. देखने और सुनने में आया है की जो महिलाएं या लड़कियां छेड़छाड़ होने पर ऑन द स्पॉट छेड़छाड़ करने वाले पुरुष को शारीरिक रूप से सबक सिखा देती हैं जैसे- थप्पड़, जूते या चप्पल से या फिर लोगों को साथ लेकर उसकी धुनाई करने जैसे काम कर देती हैं, वह न सिर्फ एक मिसाल बनती हैं बल्कि भविष्य में अपने प्रति होने वाली छेड़छाड़ से बच जाती हैं. लेकिन जो चुप रहती हैं या अवसर प्रदान करती हैं, वे भविष्य में गंभीर परिणाम को भी बुलावा देती हैं. महिलाएं किसी भी रूप में पुरुषों से कमतर नहीं होती हैं. बस इस बात को उन्हें सरे राह, सरे बाज़ार प्रूव करने की जरुरत हैं.

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