नंदू सुबह-२ समय पर काम पर जाने की कितनी ही कोशिश कर ले, १०-१५ मिनट तो लेट हो ही जाता था. गृहस्थ जीवन में भी उसकी आदत सुधर नहीं पा रही थी. एक दिन सुबह वह काम पर निकला. कोई २ घंटे बाद उसकी पत्नी का फ़ोन आता है, आपकी तबियत कैसी है? ठीक है, वह उत्तर देता है. बीती शाम वह थोड़ी तकलीफ के कारण दवा लाया था. अरे आप तो ठीक है, लेकिन मुन्ने की तबियत आपके जाने के बाद से ही ख़राब हो गयी है. उसे उल्टियाँ लग रखी हैं. अरे ! शाम तक तो ठीक था. हाँ, पता नहीं कैसे ? उसकी पत्नी ने उत्तर दिया. लगता है उसे ठंड लग गयी है. चलो, उसे गर्म कपडे पहना दो, और आराम करने दो, फिर देखते हैं. ठीक है, कहकर पत्नी ने फ़ोन रख दिया. आज जल्दी-२ में नंदू जूते की जगह चप्पल ही पहन कर काम पर आ गया था. लंच में नंदू ने सोचा अगर लंच करके १० मिनट भी बचते हैं, तो क्यों न भागकर मुन्ने को देख आऊ. ऐसा ही हुआ. नंदू ने फटाफट लंच किया और बाइक उठा मुन्ने को देखने, उसका हाल जानने दौड़ गया. गेट से ही मुन्ना और उसकी माँ को एक साथ बाहर आँगन में ही सामान्य हाल में देख उसे राहत मिली. मुन्ना खुश हो गया. मुन्ने को गोद में उठा पुचकारा और फिर से राहत की साँस लेते हुए कहा. लगता है अब तो आराम है. हाँ, पत्नी ने जबाब दिया. चलो ठीक है, मै चलता हूँ, क्यों न लगे हाथ जूता भी पहन लूं. यह कहकर उसने फटाफट जूता पहन लिया. पत्नी ने झट से पूछा आप कहा जा रहे हैं, क्यों, काम पर जा रहा हूँ, और कहाँ. आप किसलिए आये थे? मुन्ने को देखने और किसलिए, नंदू ने उत्तर दिया. “हूँ… जूता पहनने आये थे.” पत्नी ने कहा….!!! नंदू अवाक् उसे देखता रहा. इसे क्या जवाब दूं, सोचते-२ वह काम पर वापस चल दिया. लेकिन वह अन्दर ही अन्दर सोचता रहा कि क्या वह जूता पहनने ही आया था या फिर सच में मुन्ने को देखने…!!! वह सोच रहा था कि जल्दी-२ जूता पहनते तो पत्नी ने देखा, लेकिन फ़ोन आने से लेकर मुन्ने को देखने की तड़प को वह कैसे दिखाए???
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments