मानव समाज विभिन्ताओं से भरा हुआ है. यह इसकी खासियत भी है और इसे अपवाद स्वरुप भी देखा जा सकता है. दुनिया का कोई भी हिस्सा हो. भिन्नता होती ही है. एक सभ्य समाज है तो दूसरा असभ्य. कुछ पढ़े-लिखे हैं तो कुछ पढ़े लिखे नहीं हैं. कहीं शिष्टता है तो कहीं अशिष्टता. कुछ बड़े हैं तो कुछ छोटे. कुछ बुद्धिजीवी हैं तो कुछ कम बुद्धिमान और साथ ही कुछ मूर्ख किसम के भी जन हैं. सोच समझ कर कौन बोलता है. जिसमे सोचने-समझने की समझ हो, जो उसके काबिल हो. जिसके पास उसकी योग्यता हो. कुछ लोग सोचने-समझने के काबिल नहीं होते हुए भी सोच समझ कर ही बोलते हैं. वे खुद को इज्जतदार दिखाना चाहते हैं. कुछ इज्जतदार होते भी हैं. इज्जतदार होने से पहले ऐसे लोग निश्चित ही समझदार होते हैं. क्योंकि मुर्ख किसम के लोग इज्जतदार बन ही नहीं सकते. इज्जतदार को सदा अपनी इज्जत का फलूदा होने सा भय सताता रहता है. अतः वह नींद में भी सोच समझ कर ही बोलते हैं. वही कुछ इज्जतदार लेकिन बड़े लोग होते हैं. उनके पास ताकत होती है. वे ताकत के नशे में चूर होते हैं. ताकतवर लोग घर परिवार से लेकर लोकतंत्र के चारों स्तंभों में पाए जाते हैं. कुछ ताकतवर होते हुए भी ताकतवर नहीं होते है, वे अपनी ताकत का शोशा नहीं करते. वे साधारण बने रहने में यकीन करते हैं. वे सादा जीवन उच्च विचार पर ही आजीवन विचार करते हैं. कुछ कम ताकतवर होते भी ज्यादा ताकत दिखाने की मुर्ख कोशिश करते हैं क्योकि पब्लिक है, सब जानती हैं. असल में जब हम किसी को मुर्ख बनाने की बात सोचते हैं तब हम अपना ही मुर्ख बनाते हैं, और यह कडवा सच हैं. लेकीन कुछ नशेडी ताकतवर इस सच को झूठलाने की कोशिश करते रहते हैं. उन्हें अपनी ताकत का घमंड होता है. घमंडी लोग सदा से ही वही सब करते हैं, जिसकी मनाही होती है. वे दूसरों को कमतर आंकते हैं. वे दूसरों को कमजोर मानते हैं. वे अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल कर करके ज्यादा खुश होते हैं. वे पढ़े-लिखे होते हुए भी कभी कभार नहीं पढ़े लिखे जैसा व्यव्हार करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है की उनके पास ताकत है, ताकत से केवल ताकतवर ही जीत सकता है. कमजोर नहीं. कमजोर तो जनता भी नहीं है, लेकिन उसकी ताकत उसे ५ साल बाद मिलती है. फिर से वह ५ सालों के लिए कमजोर हो जाती है. वह चिल्लाती है, चीख्नती है. हल्ला करती है, शोर मचाती है, आन्दोलन करती है. वह प.म. से मिलने जाती है, लेकिन मिल नहीं पाती है. वह संसद का घेराव करने की सोचती है. वह नेताओं के घरों पर धरने पर्दर्शन करती है. उस पर पानी की बौछार मारी जाती है, उसे लाठी डंडों से खदेड़ा जाता हैं, पीटा जाता है, एक एक को ८-८, १०-१० मिलकर उठाते हैं, उठा-उठा कर बसों में भरते हैं, ठूंसते हैं. जेलों में बंद किया जाता हैं. मीडिया उसकी रात कैसे कटेगी, पर बात करती है. उसके खाने की चिंता करती है, उसके जंगल-पानी की चिंता करती है. घरवाले फूट फूट कर रोना-धोना करते हैं. उधर सोच समझ कर कदम उठाने वाले आलिशान बंगलों में रात को चैन की नींद सोते हैं. उनकी पहरेदारी में बड़े-२ अफसर अपनी डिउटी बजा लाते हैं. कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे और भी होते हैं, वे आते तो मेहमानदारी में हैं लेकिन फैशन के चलते औंधे मूंह गिर पड़ते हैं. उन्हें दौड़कर उठाया जाता हैं. कोशिश तो गिरने से बचाने की होती है लेकिन वो हैं कि गिर ही जाते हैं. फिर गिरकर सफाई देते हैं. सफाई देना उनकी आदत होती है. सफाई दिए बिना वे रह नहीं सकते. सफाई देकर भी वे दूसरों की हंसी नहीं रोक पाते हैं. वे खुद को कैमरे में कैद होने से भी नहीं रोक पाते हैं. वे पढ़े लिखे हैं, समझदार हैं, लेकिन अपनी जग हंसाई को रोक पाने में वे समर्थ नहीं हैं. आप ही बताये की कौन सोचेगा, कौन समझेगा. और फिर सोच समझ कर कौन बोलेगा. बोलने पर किसका जोर है. जोर आज्मायिस करके भी जब जोर न चले तो कोई क्या करेगा. कहा जाता है की खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचती है. कहा तो ये भी जाता है की अंगूर खट्टे होते हैं. खट्टे वही होते हैं, जो पहुँच से दूर होते हैं. पहुँच वालों को तो खा लिया जाता है, खट्टे वाले बचे रहते हैं. बिल्ली खम्भा नोंचने की कोशिश तो करती है, लेकिन नोंच नहीं पाती. इसीलिए वह दोहरा खिशियती है. खिसिया-२ कर ही रह जाती है. लगता है समय बदल रहा है, समय का पहिया लगातार घूम रहा है. हम सोचे-समझे या फिर नहीं. समय का पहिया तो घूमेगा. इसके घूमने से कुछ लोगों को घुमटा आने लगता है. घुमटा आने पर चकराकर वह गिर पड़ता है. गिरे हुए को फिर उठाना पड़ता है. उठकर वह फिर से सफाई देंगे. उनके गिरने से किसी इज्जतदार की इज्जत पर धब्बा लग जायेगा, उसे धोने के लिए सर्फ़ का इस्तेमाल होगा. बढ़िया सर्फ़ के लिए विग्ज्ञापन देखना पड़ेगा, तभी तो पता चलेगा. इज्जत का फालूदा होगा, उससे सालों से बनी इज्जत मिटटी में मिल जाएगी. फिर उन्हें अफ़सोस होगा. पुरखो की बनायीं इज्जत धुल में मिल गयी. सोचा-समझा होता तो बच जाती. सोच समझ कर दुद्धन चाचा को ले आये. महफ़िल में उन्होंने व्हाइट कोंलर को और भी चकाचक चमका दिया. वो हंस दिए. वो हंसने के लिए ही सोच समझ कर दुद्धन चाचा को लाये थे. दुद्धन चाचा को तो आना ही था. क्योंकि वो ज्यादा सोचने-समझने के काबिल नहीं थे. वो तो सीधे-साधे गाव वाले थे, जो आसानी से सोचने समझने वालो द्वारा ठग लिए जाते हैं. इसी ठगी में साल निकले, दशक निकले. आप ही बताये कोई सोच समझ कर कैसे बोलेगा ?????????????????? सोच समझ कर बोलने के लिए पहले तौलना पड़ेगा, फिर तौल कर बोलना पड़ेगा. लेकिन उनके पास तो ताकत है. और ताकतवर भला सोच समझ कर क्यों बोलेगा. आप ही बताइए सोच समझ कर कोई क्यों बोलेगा ?????????
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