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एक कहानी- सेठ जी आप तो बेवकूफ हैं…

Proud To Be An Indian
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सेठ बनवारी लाल ने अपनी छोटी सी दूकान से थोक की दूकान तक सफ़र तय कर लिया था. सारा शहर उसकी मेहनत की तारीफ करता था. भगवन भी उससे प्रसन्न रहता था. सेठ दिल का साफ़ था. लेकिन साथ ही थोडा कूटनीतिक भी. यह शायद गलत भी नहीं है. आखिर कूटनीति अपनाने वालों को जवाब भी तो देना होता है. लेकिन कूटनीति अपनाने वालों को ही. कही-२ ऐसा हो जाता है की हम एक ही डंडे से सभी को हांकने लगते हैं. यह ठीक नहीं है. सदाचार तो यह कहता है कि सही के साथ तो सही व्यव्हार करों ही लेकिन गलत के साथ भी सही तरीके से ही व्यवहार करों. सेठ कि तरक्की से कुछ लोग जलते भी थे. एक समय आया जब सेठ के बड़े घनिष्ठ मित्रों में से भी कुछ ने उसका साथ छोड़ दिया. सेठ अक्सर कहता कि जो भाग्य में है, वह तो मिलेगा ही. फुटकर दुकान में उसके थोड़े से मुलाज़िमों ने उसका भरपूर साथ दिया था. चंद मुलाजिम तो ऐसे थे, जिन्होंने सेठ का साथ शुरू से ही पकड़ लिया था, उसे कभी नहीं छोड़ा. कभी कभार सेठ उनसे कहासुनी भी करता लेकिन वे सेठ जी सेठ जी कि रट लगाये रहते. उसे छोड़ा नहीं. जब थोक कि दुकान में बड़े स्तर का काम शुरू हुआ तो मुलाज़िमो कि संख्या भी बढ़ी. अधिकांश तो मजदूर ही थे. वे आते जाते रहते थे. कुछ ख़ास लोगों में से ६ से ८ ऐसे थे, जो सेठ कि थोक कि दुकान के दारोमदार तो दिकाए हुए थे.
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सेठ अपनी तरक्की से खुश था. और इससे भी कि उसके सहारे कुछ और लोगों का चूल्हा जल रहा है. उसे दुआए भी मिल रही होंगी. निश्चित ही ऐसा होता भी है. यही कारन था कि सेठ को कभी किसी मुलाजिम ने गलत नहीं कहा. सेठ साफ़ दिल था. किसी भी मुलाजिम के साथ हँसना बोलना उसकी फितरत थी. उनकी सहायता करना सेठ को अच्छा लगता था. धीरे-२ सेठ का काम बढ़ा तो मुलाज़िमों कि संख्या भी बढ़ी. और कागजो तथा खातों का काम भी बढ़ा. गोदाम के काम के लिए तो शुरू से ही एक तिकड़म्बाज़ साथ लगा था. अनेक बोरों में से चंद बोरों का गोलमाल हो जाना कौन सी बड़ी बात है. कभी-२ तो ऐसा होता कि गोदाम भरा होता और सेठ को गाहक को वापस भेजना पड़ता, सेठ कडवा घूँट पी कर रह जाता.
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दूसरी ओर कागजी काम शुरू में तो अस्थायी लोगो से चलता रहा. एक दिन सेठ कि किस्मत खुल गयी. सेठ के कागजी कामों के लिए शहर का एक सबसे बदनाम और मक्कार मुनीम सेठ के पल्ले पद गया. सेठ कि दुकान में इसे जो भी देखता वह यही कहता- सेठ ये तूने किसे गले में बाँध लिया है. लेकिन सेठ गंभीर नहीं होता. सारा शहर जनता था कि इस मुनीम का सस्कारी कार्यालयों में प्रवेश वर्जित है. इसीलिए ये धूर्त मुनीम सेठ के सारे काम दूसरों को पैसे दे कर करवाता था. जिनमे ज्यादातर काम तो कभी पूरे ही नहीं होते. लेकिनी सेठ चुप था. मुनीम बड़ा ही मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला था. वह जनता था कि किसी कैसे शीशे में उतरना है. शराब, जुआ, अय्याशी मुनीम कि खाशियत थी. काम पर भी वह इन्हें पूरा करने कि जुगत में रहता. जोश में मुनीम कभी-२ रोब गांठने के लिए ये भी कह देता कि वह चाहे तो सेठ का धंधा आज बंद करवा दे, उसकी इतनी चलती है. दोनों मक्कारों ने सेठ को उल्लू बना रखा था. सेठ मानों तर गया हों. वे दोनों जैसा कहते, सेठ वैसा ही करता. उन दोनों ने सेठ को हर वह सलाह दी जिससे चवन्नी का फायदा और रुपैये का नुकसान होता हो. सेठ कि आँखों पर मानों पर्दा पड़ गया हो. कभी-२ तो मुनीम सेठ को कह देता- सेठ जी आप तो बेवकूफ हैं. सेठ बेचारा मुह देखता रहता. मनो पिछले जन्म का कर्ज चूका रहा हो.
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कहते हैं, किसी भी पुरुष कि उन्नाही में किसी न किसी महिला का हाथ अवश्य होता है. अब पता नहीं सेठ कि उन्नति में किसी महिला का हाथ था या नहीं लेकिनी सेठानी का जिक्र किये बिना ये कहानी अधूरी सी रहेगी. बढ़ते काम के साथ ही सेठ ने सेठानी को भी इकन्नी दुअन्नी इधर उधर करना सिखा दिया था. सेठ लाखो के सौदे पटाता तो सेठानी अपनी दुआनी अठन्नी के छीछालेदर में लगी रहती. सेठानी बन्ने के बाद तो उसके पैर जमीन पर टिकते ही नहीं थे. वह मुलाज़िमो को अपने पैर कि जूरी समझती थी. दो मिनट में उसका पारा सातवे आसमान पर.
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उधर मुनीम कि सलाहों पर चलते हुए सेठ ने अपने काम कि ऐसी तैसी फिरवा ली थी. कई मुलाजिम छोड़ कर जा चुके थे. जो थे सेठ उनके साथ अच्छा व्यव्हार नहीं करता, वह चिडचिडा हो चूका था. काम ठप्प हो गया. रोज – २नए नए कायदे बन्ने लगे थे. एक दिन रोब गांठने के चक्कर में मुनीम कि पिलाई हो गयी. सेठ ने बीच बचाव किया. मुनीम चाहता था कि सेठ उसका पक्ष ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ वह चिढ गया. सेठ को सड़क पर लाने कि ठान ली. रोज-२ नए कायदे बनवा कर सेठ से मुलाज़िमो पर जोर जबरदस्ती करवाता. फूट डालो और राज करो की नीति ने पैर पसार लिए. सब गड्ड मड्ड हो गया. अंततः मुनीम ने सेठ के सभी कामो में हेरा फेरी कर रखी थी. एक दिन मुनीम अपना बोरिया बिस्तर लेकर चलता बना और सेठ नीचे की ओर लुढक गया. सेठ मुनीम के प्रति कभी गंभीर हुआ ही नहीं. वह मुनीम कि सलाहों पर चलकर बर्बाद हो गया. अब पछता तो रहा है लेकिन हो क्या सकता है. अच्छे मुलाजिम सही व्यव्हार भी चाहते है. सेठ सोचने लगा कि ऐसा सलाहकार किसी को भी न मिले. ऐसी ही घटना सेठ के एक मित्र के साथ भी घट चुकी थी लेकिन सेठ ने उससे भी कोई सबक नहीं लिया.

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