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बाबू जी !!!

Proud To Be An Indian
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आज जब ऋषि-मुनियों और सूफियों-संतों के सांस्कृतिक और पारंपरिक देश में हमारा बुजुर्ग वर्ग हमारे द्वारा हाशिये पर धकेला जा रहा है, तो ऐसी में पाश्चात्य संस्कृति वाला ही सही एक अदद फादर्स दे हमें हमारे पिता के प्रति कृतज्ञ करने के लिए सामने खड़ा है. कल फादर्स दे है. विकास की दौड़ में लम्बी-२ दौड़ को जीतने की ललक ने आज समस्त मानव समाज को ही रिश्तों के बन्धनों से शायद बहुत दूर कर दिया है. पिता क्या होता है ? पिता वह है, जिसके हम बीज हैं. पिता वह है, जो हमारे लिए अपनी जड़ों से समझौता करता है. पिता वह है, जो हमारे लिए किसी भी समय कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. पिता वह है, जो अपने बच्चे के गाल पर खुद बच्चे की माँ की चपत भी बर्दाश्त नहीं करता है. पिता वह है जो अपने बच्चे के मुह से अनजाने में ही निकली हर फरमाईश को पूरा करता है और जब बच्चे को वह सरप्राइज के रूप में मिलता है, तो उसकी ख़ुशी ही पिता की संतुष्टि होती है. पिता वह है, जो हर मौसम में हमें छाव प्रदान करता है. पिता वह है, जो हर मौसम में किसी भी हाल में हमारी हर जरुरत को पूरा करने के लिए जूझता रहता है. पिता वह है, जो हमें हमारी कामयाबी के लिए जीता है. पिता वह है, जो हमें काबिल बनता तो है, लेकिन हमसे कोई अपेक्षा नहीं करता है. उसे तो हमारी तरक्की और उन्नति ही वह ख़ुशी दे देती है. जब चार लोगों में चर्चा होती है, की अमुक कामयाब या लायक बच्चा तो फलाने का है, तो यही बात एक पिता को अपार ख़ुशी दे देती है.
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पिता दशरथ भी एक पिता थे, उनके वचनों की खातिर श्री राम ने स्वयं ही वनवास कबूल लिया. पिता दशरथ श्री राम की याद में इस दुनिया से स्वर्गवासी हो गए. आज भी ऐसे बहुत से पुत्र होंगे. जो अपने पिता की खातिर सब कुछ करने को तैयार रहते होंगे. लेकिन भरमार तो दुसरे टाईप के पुत्रों की ही अधिक है. अपने पैरों पर खड़े होते ही आज बच्चे अपने पिता की बातों को भी सुनना ठीक नहीं समझते हैं. कभी ऊँगली पकड़कर चलना सीखने वाले बच्चे आज अपने पिता को झिडकते भी मिल जायेंगे. पिता से तकरार कोई बड़ी बात नहीं है. किसी जरुरत के पूरा न होने पर तो पिता की ऐसी-तैसी भी कुछ बच्चे करते हैं. कोई पिता अपने बच्चे को परेशान नहीं करता है, लेकिन उसे सही रस्ते पर लाने के लिए कभी-२ उसे सख्त होना पड़ता है.
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आज हमारे समाज में पिता को बेसहारा छोड़ देने और कभी-२ तो उसे अपने घर से दूर कहीं छोड़ आने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. बच्चे बड़े होकर पिता की वे सारी बाते भुला देते हैं. बुढ़ापे में छाया देने वाला पिता कांटे की तरह चुभने लगता है. जो बुजुर्ग समाज में अपनी काबिलियत के बूते एक अच्छा मुकाम हासिल किये हुए होते हैं वे तो फिर भी बुढ़ापे में अकेले ही सही अपना गुजर बसर कर लेते है, लेकिन जवानी में अपनी शारीरिक ताकत के बूते रहने वाले पिता बुढ़ापे में शारीरिक ताकत कम या खत्म पर अधिक बेसहारे हो जाते हैं. तब तो दो जून की रोटी भी इनको मुहाल हो जाती है.
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कहा जाता है की बच्चे में संस्कार डालने चाहिए. ये संस्कार ही बच्चे को अच्छा या बुरा बनाते हैं. और फिर एक अच्छा बच्चा अपने पिता के साथ बुरा व्यवहार कैसे कर सकता है ? लेकिन कहते हैं की इतिहास खुद को दोहराता है. जब हमने अपने माता-पिता की सेवा की होगी, उनकी सुनी होगी, तो भला हमारा बच्चा हमारी कैसे नहीं सुनेगा ? आखिर इतिहास भी खुद को दोहराएगा ही. हमारा आज का व्यवहार ही हमारे कल के भविष्य को तय करता है. फिर तेजी से एकल होते परिवारों में स्वछन्द जीवन जीते बच्चो को कितना दोष देना ठीक होगा. हमारे यहाँ तो प्रतिदिन बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देने की परंपरा है, लेकिन चूंकि आज विश्व एक ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रहा है, तो ऐसे में कहीं दूर मनाये जाने वाले मदर्स या फादर्स दे का हम पर भी प्रभाव तो पड़ेगा है. फिर इस एक दिन की बदौलत कम से कम हम अपने पिता के प्रति विशेष रूप से कृतज्ञ हो रहे हैं.
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कोशिश यही करनी चाहिए कि ये एक दिन हमारे लिए हर दिन बने और हमें अस्तित्व देने वाले पिता को हम और कुछ न सही कम से कम सम्मान तो दें ही. यही एक पिता अपने बच्चे से चाहता भी है. मैंने अपने जीवन में यही महसूश किया है कि माता-पिता को अपने बच्चो से केवल और केवल सम्मान कि चाह होती है. इसके न मिलने पर भी वे कोई शिकायत नहीं करते हैं, हाँ अन्दर ही अन्दर कुढ़ते अवश्य रहते हैं. जब अपनी बगिया का पेड़ निराई, गुडाई और सिचाई के बाद भी फल न दे तो थोडा दुःख तो अवश्य होता है. हम सभी मनुष्य है, देवता या फ़रिश्ते नहीं. सदैव इस बात का ख्याल रखे कि इतिहास खुद को दोहराए बिना नहीं रहता है. जो लोग आज अपनी पिता कि कद्र नहीं कर सकते उन्हें उनके बच्चे निकट भविष्य में पिता के महत्त्व को अवश्य समझा देंगे.

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