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शाख से कटने का गम …

Proud To Be An Indian
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एक दिन डायरी के पन्ने पलट रहा था, उसमे सईद अहमद अख्तर साहब की कुछ पंक्तिया लिखी मिली. सोचा आप लोगों के साथ सांझा करूँ. उम्मीद है आप लोगों को सईद साहब की ये पंक्तिया अच्छी लगेंगी.
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कुछ हकीकत तो हुआ करती थी अफसानों में,
वो भी बाकी नहीं इस दौर के इंसानों में.
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वक्त का दौर बहा ले गया सब कुछ वर्ना,
प्यार के ढेर लगे थे, मेरे खलिहानों में.
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शाख से कटने का गम उनको बहुत था लेकिन,
फूल मजबूर थे, हँसते रहे गुलदानों में.
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उनकी पहचान की कीमत तो अदा करनी थी,
जानता है कोई अपनों में, न बेगानों में.
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सर ही हम फोड़ने जाएँ तो कहाँ जाएँ,
खोखले कांच के बुत हैं तेरे बुतखानों में.

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