मनुष्य इस बगिया रुपी दुनिया का केवल माली है, मालिक नहीं. मनुष्य इस श्रृष्टि की सर्वोत्तम कृति है. इस्वर ने इस श्रृष्टि की रचना बड़े ही मन से की है. लेकिन मानव ने अपनी सही, गलत सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जो हाय तौबा मचा दी है, उसे देखते हुए क्या निष्कर्ष निकाला जाये ? जिस मालिक ने इस दुनिया को बनाया वह भी बड़े मन से, क्या वह इसकी तबाही देख सकता है ? बिलकुल नहीं. इस दुनिया का असली मालिक इस दुनिया को बहुत देर तक दयनीय स्थति में रहने नहीं देगा. ईश्वर ने मानव को इस दुनिया रुपी बगिया का माली बनाया था, इसका मालिक नहीं. इस बगिया की देखभाल का कार्य सौंपा था, इसे बेचा नहीं था. इस दुनिया की व्यवस्था को उसके हाथो सौंपा था, ताकि वह इसकी बेहतर देखभाल कर सके, इसकी उन्नति कर सके, इसलिए नहीं की वह इसे विकृत कर दे. यदि वह इस कार्य को नहीं कर सकता है या फिर इसे बिगाड़ता है, तो इसे अधिक देर तक चलने नहीं दिया जा सकता. उसकी मनमर्जी नहीं चलते रहने दी जा सकती. दुनिया बनने से लेकन आज तक लगातार हम एक-दुसरे से खार खाए जा रहे हैं. जमीन-जायदाद से लेकर और तमाम व्यर्थ की बातों पर एक दुसरे के लिए हम बाहें चढ़ाते आ रहे हैं. ये मेरा, ये तेरा और ये उसका, बस यही आज का यथार्थ रह गया है. फिर काला-गोरा, अमीर-गरीब, धर्म-जात पर भी हमने बाहें चढ़ा ली. क्या हासिल हुआ या फिर हो रहा है ? भौतिक सुखों की चाह में हमने इस सुन्दर बगिया की वाट लगा दी. आज प्रकृति की मार चंद लोगों के कारन सभी को झेलनी पड़ रही है. प्राकृतिक सौन्दर्य सिकुड़ता जा रहा है. प्राकृतिक सम्पदाएँ हमसे दूर जा रही हैं. हवा-पानी जैसी इश्वरिये संपदाओं को भी हमने गन्दला कर दिया है. न दिन को सुकून है और न ही रात को चैन. एक दिन इस बगिया का माली बदलेगा, क्रम सुधरेगा. वह नीली छतरी वाला अपनी इस बगिया की सुन्दरता को बिगड़ने नहीं देगा, अस्त-व्यस्त नहीं होने देगा. जैसा की हो रहा है या किया जा रहा है. जब छोटा बच्चा शरारत करता है तो उसे कुछ हद तक ही छूट मिलती है, लेकिन जब वह नुकसानदायक शरारत करता है, तो उसे रोका जाता है, धमकाया जाता है और कभी-कभी चपत भी लगायी जाती है. यह उसके लिए भी हितकर होता है और उसके चाहने वालों के लिए भी.
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