बलात्कार-कृत्य-दंड और विधान-( jagran junction forum)
Proud To Be An Indian
149 Posts
1010 Comments
बलात्कार एक ऐसा कृत्य, जो पीड़ित को जीवन भर के लिए एक ऐसी मानसिकता के अधीन कर देता है, जिसकी कल्पना मात्र से रूह कांप उठती है. बलात्कार ऐसा निकृष्ट दुष्कर्म है, जिसके आगे हैवानियत भी शर्मा जाये. जबरन एक स्त्री से उसकी अस्मिता छीन लेना, जीवन भर के लिए उसकी आत्मा पर एक बोझ लाद देना निश्चित ही घ्रणित कृत्य हैं. एक महिला, या फिर युवती या किशोरी जब बलात्कार की शिकार होती है तो वह एक प्रकार से अन्दर से मर जाती है. हालांकि जीवन या मृत्यु किसी के वश की बात नहीं है. ऐसे में वह आजीवन अपने को बस ढोती है. ———– आज बलात्कार का समाचार आम हो चूका है. दिन-प्रतिदिन की ख़बरों में बलात्कार की खबर भी आम हो चुकी है. कभी अनजाने शख्श द्वारा तो कभी तो जाने-पहचाने और अपने द्वारा ही किये इस घ्रणित कृत्य का समाचार अखबारों में भरा पड़ा होता है. बलात्कार क्या है ? यह इंसानी हैवानियत का एक नाम है. एक ऐसी हवश को पूरा करने का नाम जिसके आगे इंसानी अस्मिता को कुचल कर रख दिया जाता है. ———– सामान्यजन के लिए बलात्कार का समाचार एक समाचार मात्र होता है. लेकिन सम्बंधित के लिए वह जीवन-मरण का सवाल होता है. भारतीय समाज के सम्बन्ध में बलात्कार की बात करें तो यह घटना बढती ही जा रही है. एक ओर विकास और दूसरी ओर बलात्कार जैसी घटनाओं में बृद्धि ? एक ओर महिला सशक्तिकरण और दूसरी ओर बलात्कार के मामलों में वृद्धि ? कहने को हम लगातार अधिक उन्नत और साधन संपन्न हो रहे हैं लेकिन इस प्रकार के मामले हमारी सारी पोल खोलते हैं. ———– हमारी शिक्षा दर में वृद्धि हो रही है फिर भी हमारी मानसिकता नहीं बदल रही है. आखिर क्या कारन है ? उन्नत मानसिकता तो बुरे कार्यों से परहेज करती है. मतलब ये है की हम पैसा कमाने की मशीन बन रहे हैं और हमारी नैतिक और आत्मिक मानसिकता निम्न ही रह जा रही है. बलात्कार पर सजा के बारे में हम विचार कर रहे हैं लेकिन वहीँ कुछ लोग उस सजा से बचने के उपाय बारे भी विचार कर रहे होंगे. कानून बनता है तो उसका तोड़ भी बना दिया जाता है. ———– आज हम बलात्कार पर क्रूरतम सजा का प्रावधान हो, पर बात कर रहे है. इससे पहले हमें अपने सामाजिक बदलाव की भी बात करनी चाहिए. ऐसी स्थति ही न आने पाए, जिसमे ऐसा कृत्य अंजाम दिया जाता है. दुसरे यह की सामाजिक परिवर्तन के नाम पर जो बदलाव आ रहा है, वह पूरी तरह सकारात्मक नहीं है. आज बच्चे वक्त से पहले ही जवान हो रहे हैं. सुचना माध्यामों से नव पीढ़ी में बुराइयों की तरकीबे मनोरंजन और सुचना के नाम पर पहुँच रही हैं. अश्लीलता एक प्रमुख कारण है. ———– लेकिन फिर भी इस जघन्यतम अपराध के प्रति नरमी की कोई गुंजाईश नहीं होनी चाहिए. बलात्कार की सजा होनी ही ऐसी चाहिए, जिससे कोई ऐसा सबक मिले की इस अपराध पर अंकुश लगे. अभी तक तो ऐसा कानून है नहीं जो क्रूरतम दंड की व्यवस्था करता हो. इससे इस अपराध को रोकने या समाप्त करने में काफी कठिनाई हो रही है. वैसे भी कानून को तोड़ने की परम्परा हमारे यहाँ कुछ ज्यादा ही है. ———– जो लोग बलात्कारियों के प्रति मानवाधिकार की बात करते हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए की बलात्कार करके उन्होंने कौन से मानवाधिकार की रक्षा की है ? या फिर कौन सा मानवाधिकार का काम किया है ? जब नहीं तो उसके प्रति नरम रवैया कैसा ? जब तक बलात्कारियों के प्रति सख्त रुख नहीं अपनाया जायेगा, तब तक बलात्कारियों के हौशले बुलंद ही रहेंगे. और जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक पीड़ित के प्रति हमारे समाज की जिम्मेदारी पूरी नहीं होती. साथ ही पीड़ित के प्रति व्यापक सामाजिक दृष्टिकोण की जरुरत है. हमारे यहाँ यदि दुष्कर्मी को बुरी नजर से देखा जाता है तो वही पीड़ित के प्रति भी हम बहुत दुरुस्त दृष्टि नहीं रखते है. बजाये सहानुभूति के हम उस पर हँसते हैं, उपहास करते हैं. घर, परिवार और रिश्तेदारों के साथ ही पास-पड़ोस भी या तो उसके जख्मों को कुरेदता है या फिर यदा-कदा उस पर हँसता है. इन सब बातों के लिए किसी कानून की नहीं अपितु स्वनियमन की जरुरत है. खाली समय में हमारी चर्चा का विषय भी अक्सर ऐसे ही किसी पीड़ित का मामला हो जाता है. ये ठीक नहीं है. ——— अंत में ये की क्रूरतम सजा के प्रावधान पर बात करते हुए हमें इसका भी भली प्रकार भान होना चाहिए की कहीं इसका शिकार कोई निर्दोष न हो जाये. यदि ऐसा होता है तो इसके लिए भी समाज ही दोषी होगा. अक्सर बहुत से मामले ऐसे होते हैं, जिनमे निर्दोषों के सजा पाने की बाते सामने आती हैं. चंद महिलाएं भी कानून का गलत इस्तेमाल करती हैं. दहेज़ कानून का उदहारण दिया जा सकता है. निर्दोष ससुराल वालों और पति को भी इस कानून में कड़ी सजा मिलती है..
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments