अमेरिका ने अपने आपरेशन को अंजाम तक पहुंचा दिया है. अब वह आगे की कार्रवाही में लग गया है. कहाँ दबाव बनाना है, किससे पूछताछ करनी है, यह सब कुछ वह एक योजनाबद्ध तरीके से कर रह रहा है. दुनिया भर में उसकी वाहवाही हो या फिर आलोचना, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. उसे अपने निशाने से कोई डिगा नहीं सकता. इसके पीछे जो मूल कारण है, वह ये कि अमेरिका में राष्ट्र को सर्वोपरि रखा जाता है. इसीलिए राष्ट्र हित के लिए एक होकर कुछ भी करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होता है. जबकि हमारे यहाँ ऐसा नहीं है. यहाँ तो केवल कुर्सी के लिए कुछ भी करने का प्रचलन है. ओसामा मुद्दे पर भारतीय मीडिया क्या कर रही है, इस पर मै कुछ नहीं कह रहा हूँ, लेकिन ये अवश्य है की हमारी मीडिया वह नहीं कर रही है, जो उसे करना चाहिए. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है की मीडिया एक सशक्त स्तम्भ बन चुकी है लेकिन साथ ही यह भी कहना होगा की वह दिशाहीन हो रही है. टीआरपी और बाजारवाद ने उसे मूल्यहीन पत्रकारिता को बढ़ावा देने वाला बना दिया है. हमारा शासन तत्र ऐसा है की बस पूछिये मत ! चुनाव होने वाले हैं या फिर हो रहे हैं, तो जनहित भी हो रहा है, जैसे ही चुनाव समाप्त होते हैं, जनहित भी समाप्त हो जाता है. घोशनाएँ अलमारियों में धुल फांकती रहती हैं. पब्लिक की पुलिसिया पिटाई होती है. देश के विकाश के नाम पर केवल चंद लोगों का विकास होता है और इसे ही पूरे देश का विकास माना जाता है. ओबामा के आपरेशन से भारत के लोगों को भी आश बंधी की हमारी सरकार भी अपने दुश्मनों को खोज-२ कर निकालेगी और उन्हें अमेरिका की ही तरह सजा देगी लेकिन क्या यह सब संभव है ? निश्चित ही नहीं. हमारे देश की जो वर्तमान दशा और दिशा है, उसके मद्देनज़र इस प्रकार के कार्य को अंजाम देने की तो स्वप्नवत भी नहीं सोची जा सकती है. ऐसे कार्यों के लिए सर्वप्रथम तो देश के नीति नियंताओं को एक होना होगा, जो कि संभव ही नहीं है. एक होने पर कुर्सी का सपना कैसे पूरा होगा ? कुर्सी से मोहभंग करना तो राजनीतिज्ञों के लिए संभव ही नहीं है. आज कुर्सी का सपना जब नेताओं के आलावा अन्य जमात के लोग भी देखने लगे हैं, ऐसे में नेता लोगों से कुर्सी मोह को भंग करने की अपेक्षा भी आखिर कैसे की जानी चाहिए ? दूसरी बात ये की समस्याओं का समाधान धैर्य से होता है न की आवेश में. दूसरे की करनी को देखकर अपनी करनी की तुलना करना बचकानी हरकत होगी. फिर अपनी चादर भी तो देखनी चाहिए. इसलिए यदि ये कहा जाये कि हमारे यहाँ अभी राष्ट्रहित सर्वोपरि नहीं है, बल्कि कुर्सी हित सर्वोपरि है. और ऐसे में देश के दुश्मनों कि वाट लगाने की बात कोरी कल्पना ही होगी.
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