आतंकवाद का खात्मा अभी बाकी है. Jagran Junction Forum
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आतंकवाद, जिससे सारी दुनिया की रूह कांपती है. आतंकवाद एक धारणा है, एक विचार है, जिसका कि कुछ लोग अनुसरण करते हैं. आज आतंकवाद को मानवता का दुश्मन माना जाता है. बन्दूक के बल पर अपनी हर मांग को मानव समाज के एक बड़े हिस्से पर थोपना इनकी बपौती बन चुकी है. पहले ये कमजोरों को डराया करते थे. बाद में ये इतने ताकतवर हो गए कि इन्होने ताकतवरों को भी अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया. वर्तमान हालात ये हैं कि ये दुनिया-समाज कि बड़ी-२ ताकतों को हिला कर रख देने कि कुव्वत रखते हैं. इनका सीधा सरोकार अपना और अपने जैसों का विचार एक ऐसी दिशा कि ओर मोड़ देना है, जिसका मानवता से कुछ लेना-देना नहीं हैं. अपने चंद अनुयायिओं के बल पर ये दुनिया मुट्ठी में करना चाहते हैं. और अपने विचारों को थोपना चाहते हैं. इसे आखिर किस प्रकार ठीक कहा जा सकता हैं ? विगत कुछ वर्षों से तो आतंकवाद ने इंसानियत का जम कर खून किया है. यही कारन है कि आज सारी दुनिया चाहे जैसे भी हो आतंकवाद का खत्म चाहती है. आतंकवाद के बढ़ने का एक कारण ये भी है कि कुछ देश इसे दूध पिलाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे और आज भी हैं. लेकिन ये किसी के भी सगे नहीं हो सकते. ओसामा का नाम आतंकवाद कि सूची में एक ऐसा नाम है, जिसने सारी हदें ही पार कर दी. आज जब ओसामा से खात्मे का जश्न मनाया जा रहा है. वाहवाही लूटी जा रही है, उम्मीदें की जा रही हैं की औरों को भी ऐसे ही ख़त्म किया जायेगा तो साथ ही कुछ अटकलें भी हैं, जिन्हें इग्नोर नहीं किया जा सकता है. पहला तो यही की क्या ओसामा का खत्म सच में हो गया है ? दूसरा की यही ओस्समा मारा भी गया है, ये मान भी लिया जाये तो क्या सारे आतंकवाद का सफाया हो गया है ? क्या ओसामा का खत्म सारे आतंकवाद का सफाया है ? निश्चित ही नहीं. एक व्यक्ति को मारकर सारे विचार को नहीं समाप्त किया जा सकता. ये सच्चाई है और इसे स्वीकारना होगा. आतंकवाद का ये विचार तभी नष्ट होगा जब साडी दुनिया एकजुट होगी. एक-दुसरे का इमानदारी से साथ देगी और आस्तीन में सांप पालने की अदा से भी साथ ही परहेज करना होगा. अक्सर ऐसा करने वाले दुसरे को सबक सिखाने की चाहत रखते हैं. लेकिन उन्हें हकीकत को स्वीकारना होगा. ये मानना होगा की सांप किसी के नहीं होते. इनके फन को कुचलना ही होगा. लेकिन अफ़सोस की ऐसा नहीं है. और इसी बात का फायदा उठाकर ये आतंकवाद फलता-फूलता है. मरता है और फिर जीवित हो उठता है. आज के युग में जहाँ एक सूई के खोने पाने की खबर ब्रेकिंग न्यूज बन जाती है, वहां कैसे माना जाये की दुनिया का सबसे खूंखार आतंकवादी किसी देश में छिपा हो, और उसकी खबर उस देश को या फिर आसपास के पड़ोसियों को न हो ? जब तक हम दुसरे के लिए गड्ढा खोदते रहेगे, आतंकवाद समाप्त नहीं हो सकता. जब तक हम नैतिक जिम्मेदारी खुद की तय नहीं करते, आतंकवाद समाप्त नहीं होने वाला. ओसामा का यदि सच में खत्म हो गया है तो यह एक आश भर है की भविष्य में एकजुट जोकर हम आतंकवाद को ख़त्म कर सकते हैं. आज कई दिनों बाद भी ये सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है की ओसामा सच में मारा गया है या फिर आत कुछ और ……. ही है ? कुछ के द्वारा इसे योजनाबद्ध तड़का भी कहा जा रहा है. आखिर ये कैसे माना जाना चाहिए की सच के उजागर होने से सुरक्षा व्यवस्था भंग हो सकती है ? फिर ये क्यों न माना जांए की वह तो सच के उजागर ना होने पर भी भंग हो सकती है ? पेंच बहुत हैं. और मुद्दा एक की आतंकवाद अभी समाप्त नहीं हुया है.
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