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न खेलब, न खेले देब

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हमारे यहाँ एक पुरानी कहावत है- “न खेलब, न खेले देब”. अर्थात न स्वयं करेंगे और न ही दूसरे को करने देंगे. इस कहावत को चरितार्थ होते हम्मे से अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में बखूबी महसूस किया होगा. मैंने भी अपने जीवन में खासकर बचपन में इस बात को बहुत महसूस किया है और आज भी कर रहा हूँ. अक्सर कुछ दबंग और शरारती बच्चे कुछ बच्चों के खेल में आ कर खड़े हो जाते और उनका खेल बिगाड़ने की कोशिश करते या फिर कई बार वे ऐसा करने में कामयाब भी हो जाते. उनका यही मकसद होता कि न वे खेलेंगे और न ही दूसरे को खेलने देंगे. आज फिर इस बात को महसूस करने का समय चल रहा है. कई वर्षों से सुनता और देखता आ रहा हूँ कि हमारे देश में भ्रस्ताचार फैलता ही जा रहा है. किसी तरह अन्ना जैसे व्यक्ति ने अगुआ होकर लोगों का नेत्रित्व किया और सरकार पर वे इस कदर भारी पड़े की उसे बिल के लिए मानना ही पड़ा. हालाँकि अभी बहुत खुश होने की जरुरत नहीं है लेकिन फिर भी इसे एक प्रकार की जीत के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन पता नहीं क्यों कुछ लोग इस कोशिश को अंजाम तक पहुँचाने की बजाय इसे नाकाम करने पर ही अधिक तुले हुए हैं.
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केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद अब दूसरे केंद्रीय सलमान खुर्शीद ने भी कह दिया कि लोकपाल विधेयक से कुछ नहीं बदलेगा। ये दोनों लोकपाल बिल के लिए बनाई गई संयुक्त समिति के सरकारी सदस्य हैं। सिब्बल के कथन से नाराज अन्ना ने कहा है कि अगर सिब्बल को प्रस्तावित लोकपाल बिल में यकीन नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें। अन्ना ने यह भी कहा है कि कमेटी में शामिल सभी दस सदस्य अपनी संपत्ति का ब्यौरा दें और साथ ही यह मांग भी की है कि कमेटी की सभी बैठकों को पारदर्शी बनाने के लिए बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग हो। सलमान ने सिब्बल के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि भगवान है तब भी अपराध होते ही हैं।
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इससे पहले सिब्बल ने कहा कि जरूरत लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को बदलने की है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि जहां सुविधा ही नहीं है, वहां लोकपाल बिल क्या करेगा। उन्होंने कहा था कि किसी गरीब को अपने मरीज को अस्पताल में भर्ती करना होता है, लेकिन बिना किसी नेता के फोन के बिना यह नहीं हो पाता है, ऐसे में वहां लोकपाल बिल क्या करेगा? एक गरीब बच्चे को स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता हैं. उनके लिए पर्याप्त स्कूल नहीं हैं और शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, ऐसे में लोकपाल बिल क्या करेगा? उन्होंने पूछा कि क्या लोकपाल बिल से लोगों को सिलेंडर, बिजली, पानी, फोन जैसी जरूरी सुविधाएं मिल पाएंगी? सिब्बल से पूछा जाना चाहिए की जब उन्हें पता है की व्यवस्था में कमी है तो उन्होंने आज तक इसे सुधारने का प्रयास क्यों नहीं किया ? क्यों कोई कोशिश नहीं की कभी ? आज जब इसकी कोशिश की जा रही है तो बजाय मनोबल बढ़ाने के वे नकारात्मकता फैला रहे हैं.
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सिब्बल के इस बयान से अन्ना ठीक ही नाराज हुए हैं। अन्ना ने ठीक ही कहा कि अगर सिब्बल को लोकपाल बिल में विश्वाश ही नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें। यदि सिब्बल को इस जंग में यकीन ही नहीं है तो वे दुसरे काम कर सकते हैं. दूसरी ओर सिब्बल ने कह रहे है कि वह हजारे के साथ थे और वह चाहते थे कि विधेयक जल्द से जल्द बने और सभी जगहों पर भ्रष्टाचार से लडऩे में सक्षम हो। अपने पहले दिए गए बयान पर सफाई देते हुए वह कह रहे हैं कि मैं कहना चाहता था, विधेयक का उपयोग अलग है। आम आदमी की परेशानी अलग। सिब्बल ने कहा, मैंने कहा था, अगर आप बच्चों को शिक्षित करना चाहते हैं तो उसका लोकपाल विधेयक से कोई संबंध नहीं है। अगर पानी की समस्या है तो.. लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार के मामलों से है और हम एक अच्छा विधेयक लाएंगे जो भ्रष्टाचार को रोक देगा। उन्होंने कहा कि वे हजारे के साथ मिलकर एक ऐसा विधेयक लाएंगे ताकि उसका लक्ष्य पूरा हो सके। किरण बेदी ने भी कहा कि इन प्रयासों में अगर सिब्बल को विश्वास नहीं है तो उन्हें समिति के अन्य सदस्यों का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अच्छा होगा कि वह समिति से अपना नाम वापस ले लें। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सिब्बल को बयानबाजी नहीं करनी चाहिए जिससे इस विषय पर सरकार की गंभीरता पर प्रश्न खड़े हों।
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केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने ये भी कहा कि लोकपाल विधेयक संबंधी संयुक्त समिति की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराने की अन्ना की मांग पर फैसला समिति को ही करना है। इससे ये पता चलता है की करकार अपनी मर्जी को थोपने से बाज नहीं आएगी. सरकारी अधिसूचना के अनुसार समिति को ३० जून तक मसौदे को अंतिम रूप देना है। समिति में पांच मंत्री और नागरिक संगठनों के भी पांच सदस्य हैं। निश्चित ही लोकपाल बिल की स्थापना से भ्रष्टाचार से मुकाबला करने में मदद मिलेगी. जिस प्रकार हम जीवन के अन्य क्षेत्रों में अपने को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, वैसा राजनीति में भी किया जा सकता है और उस दिशा में लोकपाल बिल एक महत्वपूर्ण कदम होगा। हकीकत तो यही है कि सरकार भ्रष्टाचार से लडऩे के लिये गंभीर नहीं है इसीलिये वह इस विधेयक के बनने से पहले जनता के मन में संदेह पैदा करने लग गई है और उसके लोग ये काम बखूबी कर भी रहे हैं. दूसरी ओर स्वयं सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी समझना चाहिए की यदि वे आपस में मिलकर जनहित के विषयों पर एक साथ खड़े होंगे तो मंजर कुछ और ही होगा. लेकिन यदि एक-दुसरे की बात को इस प्रकार तूल दिया जायेगा तो संकट ही आएगा. निश्चित ही अन्ना की बात के पीछे उद्देश्य गलत नहीं था. कई बार हमारे शब्द हमारी भावना से कुछ अलग अर्थ दर्शाते हुए प्रतीत होते हैं. हमें ज़ज्बे को समझना चाहिए. एक अच्छी पहल हुयी है, उसे आगे ले जाने की जरुरत है. हमें ये भी समझना चाहिए कि विवादों को हवा देने का काम भी कुछ लोग कर रहे हैं.

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