एक दिन मुझे श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कृति ‘ए वतन तेरे लिए’ की ये रचना पढ़ने का सौभाग्य मिला. कविता की मुझे बहुत अधिक समझ नहीं है, लेकिन फिर भी श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कृति ‘ए वतन तेरे लिए’ की ये रचना मुझे ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे इसके सहज भावों को किसी के लिए भी समझना कठिन नहीं है. पूर्ण रूप से राष्ट्रीयता के प्रति प्रतिबद्ध ये रचना अपने आप में इतना कुछ समेटे हुए है कि बरबस ही आप लोगों के समक्ष इस रचना को प्रस्तुत करने के लिए मै बाध्य हो रहा हूँ.
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हम भारतवासी दुनिया को, पवन धाम बनायेंगे, मन में श्रद्धा और प्रेम का, अद्भुत दृश्य दिखायेंगे.
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ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, दिल में प्यार बसायेंगे, नफरत का हम तोड़ कुहासा, अमृत रस सरसाएंगे. हम निराशा दूर भगाकर, फिर विश्वास जगायेंगे, हम भारतवासी दुनिया को, पावन धाम बनायेंगे.
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उलझन में उलझे लोगों को तत्वदीप समझायेंगे, भटक रहे जो जीवन पथ से उनको राह दिखायेंगे. हम खुशियों के दीप जला, जीवन ज्योति जलाएंगे, हम भारतवासी दुनिया को, पावन धाम बनायेंगे.
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सत्य अहिंसा त्याग समर्पण की बगिया मह्कायेंगे, जग के सारे कलुष मिटा धरती को स्वर्ग बनायेंगे. ‘विश्व बंधुत्व’ का मूल मन्त्र, हम दुनिया में सरसाएंगे, हम भारतवासी दुनिया को, पावन धाम बनायेंगे.
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– रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कृति ‘ए वतन तेरे लिए’ से साभार.
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