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होली के गुलाल का रंगमय आनंद

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भारत को तीज-त्योहारों का देश कहा जाता है. यहाँ वर्ष-पर्यंत त्योहारों का शमां चलता रहता है. विश्व के सभी धर्मों के लोगों के यहाँ पाए जाने के कारन यहाँ की संस्कृति विश्व की अनोखी संस्कृति है. भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ सबसे अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं. यहाँ विभिन्न धर्म और समुदाय के लोगों के होने के कारन वर्ष भर भिन्न-२ प्रकार के उत्सव और मेलों का आयोजन होता रहता है. ये त्यौहार जहाँ लोगों में उनकी धार्मिक आस्था के प्रतीक होते हैं, वहीँ विविधता में एकता वाली भारतीय संस्कृति को ये अलग पहचान देते हुए उन्हें बनाये रखने में भी सहायक होते हैं.
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विभिन्न त्योहारों में एक त्यौहार है होली का त्यौहार. वैसे तो प्रत्येक त्यौहार को मानाने के पीछे कोई न कोई कारन होता ही है लेकिन होली के त्यौहार के रंगों के त्यौहार होने की वजह से यह अपनी अलग ही छटा बिखेरता है. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली का त्यौहार सभी को अपने रंग में रंगने और विभिन्न प्रकार के गुलालों के साथ धूमधाम से इसे मानाने को भारत के लोग बेशब्री से इंतज़ार करते रहते हैं.
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भारत में मुख्यतः होली हिन्दू और सिख समुदाय द्वारा मनाई जाती है. विश्व में भारत के बाद नेपाल, श्रीलंका और कई अन्य देश, जिनमे भारतियों की तादाद ठीक-ठाक है, बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. इनमे सूरीनाम, गुयाना, दक्षिण अफ्रीका, थाईलेंड, त्रिनिदाद, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट, मौरिशश और फिजी हैं. सबसे अधिक उत्साहपूर्वक मनाई जाने वाली होली है भगवान् श्रीकृष्ण से जुड़े स्थानों मथुरा, वृन्दावन, नंदगाँव और बरसाना की होली. होली से करीब एक पखवाड़ा पूर्व ही ये स्थान पर्यटकों के लिए खासे प्रिय स्थान हो जाते हैं.
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होली का मुख्य दिन धूलि-वंदना या संस्कृत में धुलंदी के रूप में जाना जाता है. एक-दूसरे पर गुलाल डाल सभी उमंग-तरंग से सराबोर हो उठते हैं. इस दिन से एक दिन पूर्व होलिका दहन की परंपरा है. जो बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है. होली के उत्सक को हमारे देश में विभिन्न रूपों में मानाने की परंपरा रही है. बरसाना (उत्तर प्रदेश) की लठ-मार होली खासी प्रसिद्द है. जिसे राधा रानी मंदिर के खुले प्रांगन में खेला जाता है. हजारों की संख्या में लोग लठ मार होली का आनंद उठाते हैं. होली गीत गायन के साथ ही ‘श्री राधे श्री कृष्ण’ का उच्चारण किया जाता है. इसके साथ ही ब्रज मंडल द्वारा शुद्ध ब्रज भाषा में होली गीत गया जाता है. भगवान् श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और वृन्दावन में होली के दिन विशेष पूजा-अर्चना की प्रथा है. समस्त ब्रज स्थान और इसके साथ लगते हाथरस, अलीगढ और आगरा में भी होली को इसी रूप में मानाने की प्रथा है. उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले गोरखपुर में होली की दिन विशेष पूजा की प्रथा है. इस दिन को वर्ष के सबसे खुशमिजाज़ और रंगीन दिन के रूप में मनाया जाता है, जो लोगों में आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ता है. इसे ‘होली-मिलन’ के रूप में मनाया जाता है. लोग एक-दुसरे के घर जाते हैं, होली गीत गाते हैं और गुलाल (अबीर) लगा कर अपने मनोभावों को प्रदर्शित करते हैं. होली का त्यौहार पुराने वर्ष के बीतने और नए साल के नयी योजनायों के साथ शुभ शुरुआत को भी दर्शाता है.
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इसी प्रकार उत्तराखंड के कुमायूं छेत्र की ‘कुमाऊनी होली’ भी विख्यात है. कुमाऊनी होली में बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली बसंत पंचमी से शुरू हो जाते हैं. खड़ी होली मुख्यतः कुमाऊँ शेत्र के ग्रामीण इलाकों में मनाई जाती हैं. पारंपरिक परिधान चूड़ीदार पजामा और कुरता पहने लोगों द्वारा खड़ी होली का गीत गाया जाता है. ढोल और हरका जैसे वाद्य यंत्रों के संगीत पर लोग समूह में नृत्य करते हैं. धुलंदी को कुमाऊनी में छरड़ी के नाम से जाना जाता है. छरड़ी शब्द छरड़ से बना है, जिसका अर्थ है प्राकृतिक रंग, जिसे फूलों, राख और पानी से बनाया जाता है.
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बिहार में होली बाकी भारत की भांति ही मनाया जाता है. वहां की स्थानीय भोजपुरी में यह फगवा के रूप में जानी जाती है. लोग इस अवसर पर अपने घरों की सफाई करते हैं. फाल्गुन पूर्णिमा की साँय को होली दहन किया जाता है. बिहार के कुछ स्थानों में लोग कीचड़ से भी होली खेलते हैं. होली में सराबोर लोग ढोलक की धुन पर नृत्य करते हुए लोक गीत गाते हैं और आनंदित होते हैं. बंगाल में होली ‘डोल-जात्र’ या ‘डोल पूर्णिमा’ के रूप में जानी जाती है. यहाँ होली को एक विशेष रूप में मनाने की प्रथा है. जिसमे राधा और कृष्ण की मूर्ति से सजी पालकी को शहर या गाँव के चारों और घुमाया जाता है. धार्मिक गीत के बीच महिलाएं नृत्य करती हैं और पुरुष उन पर गुलाल तथा अबीर फेंकते हैं. होली उत्सव से सराबोर दृश्य देखते ही बनता है. परिवार का मुखिया उपवास रखता है और भगवन कृष्ण तथा अग्निदेव की पूजा-अर्चना करता है. पारंपरिक अनुष्ठानों के पश्चात् भगवन कृष्ण और अग्निदेव को भोग लगाया जाता हैं. शांति निकेतन में होली विशेष संगीतमय रूप में अनुभव की जा सकती है. इस अवसर पर लोग विभिन्न पारंपरिक व्यंजनों मालपुआ, खीर, केसर-दूध, पायाश आदि का भरपूर आनंद उठाते हैं. भारत में उड़ीसा और गोआ में भी होली के विशेष रूपों को बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है. गुजरात में होली का अलग ही अंदाज होता है. यहाँ हिन्दुओं के मुख्य त्यौहार के रूप में होली को बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. होलिका दहन के समय लोग एकत्र होते हैं और होलिका के चारों ओर गीत-संगीत का शमां होता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक और उसकी ख़ुशी मनाने के रूप में देखा जाता है. गुजरात के अहमदाबाद में मक्खन हांड़ी को तोड़ने की प्रथा खासी प्रसिद्द है. गुलाल फेंक कर लड़कियां गोपियों के रूप में लड़कों को हांड़ी तोड़ने से रोकने का प्रयास करती हैं. हांड़ी तोड़ने वाले युवक को होली राजा का ताज पहनाया जाता है. इसी प्रकार महाराष्ट्र, मणिपुर, केरल, कर्णाटक, कश्मीर, पंजाब और देश के अन्य भागों में इस त्यौहार को बड़ी ही हर्षोल्लास और पारंपरिक ढंग से मनाया जाता हैं.
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अतः यही कहा जाना चाहिए की इस देश में त्यौहार चाहे कोई भी हो, वह धार्मिक संस्कारों से सज्जित होता है. इस देश की परम्परा रही है कि किसी भी त्यौहार को बड़े ही प्रेम पूर्वक ढंग से भाईचारे के सन्देश के साथ मनाया जाये. वतर्मान में इसमें थोड़ी कमी अवश्य आई है. पाश्चात्य शैली के कारन हम इन्हें सहेजने में नाकाम हो रहे हैं. कुछ उत्पाती लोग इन त्योहारों पर उत्पात मचाते हैं, गलत हरकतें करते हैं और साथ ही गलत रीतियों को बढ़ावा भी देते हैं. बाजारीकरण के कारन रसायनयुक्त रंगों के प्रयोग के साथ ही डी.जे. की पाश्चात्य धुन और शराब के प्रयोग का चलन बढ़ता ही जा रहा हैं. महिलायों की मान-मर्यादा भी यदा-कदा भंग होती है. यही कारन हैं की अब त्योहारों का रंग फीका पड़ने लगा है. इन सबके कारन सामाजिक व्यवस्था में अस्थिरता का पैदा होना स्वाभाविक है. हमें यह प्रयास करना चाहिए की हमारे तीज-त्यौहार, अपने मूल रूप में बने रहें और हम अपने मूल्यों के साथ इनमे सराबोर होते हुए पूर्ण आनंद की प्राप्ति करें. तभी होली के गुलाल का रंगमय आनंद आ पायेगा. होली के इस पावन और रंगमय त्यौहार पर सभी देशवाशियों को होली की हार्दिक शुभकामनायें.

(चित्र गूगल इमेज से साभार)

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