Menu
blogid : 580 postid : 1560

गठबंधन धर्म बेशर्मी का शबब !

Proud To Be An Indian
Proud To Be An Indian
  • 149 Posts
  • 1010 Comments

जब कोई उपाय न सूझ रहा हो तो अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ दो. यह उत्तम उपाय है. जब तक दूसरा विचारेगा की उक्त गलती उसने की है या ठीकरा फोड़ने वाले ने, तब तक बात आई-गयी हो जाएगी. बहुत सरे लोगों के बीच किसी बात का आई-गयी हो जाना मायने रखता है. खासकर जब मीडिया बीच में हो. ये स्तम्भ वैसे ही आजकल बदनाम है. खाली पेट जागरूकता फैलाना किसी के बूते की बात नहीं रह गयी है. और खाली पेट भरना वर्तमान परिदृश्य में जंचता नहीं है. अतः पेट भरने के साथ ही घर भरने की जुगत में भी लगा मीडिया बदनाम हो गया है. इसकी बदनामी दूसरों की बदनामी दूर कर सकती है, यह इसे पता ही नहीं है. सादर आमंत्रण से मीडिया वैसे ही फूलकर कुप्पा हो जाता है. भले ही छाछ पिलाकर आयोजन समाप्त कर दिया जाये.
———————————————————————————————————————————————–
हमारे पी.एम्. एक जाने-माने अर्थशाष्त्री है. उन्होंने एक समय इस देश को आर्थिक मंदी से उबारा था. वे विश्वविख्यात हैं. उनके व्यक्तित्व को सत्ता पक्ष के सबसे बेहतरीन छवि वाला व्यक्तित्व बताया जाता है. उन्हें शालीन भी कहा जाता है. निश्चित ही वे हैं, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अभी तक मनमोहन सिंह ने अपनी कूटनीति इतनी बारीकी से किसी को नहीं दिखाई थी. अभी हाल ही में सरकार के कलंक धोने के लिए नीति बनायीं गयी की मीडिया के चंद पैरोंकारों को बुलाया जाये और उन्हें कक्षा के बच्चो की तरह हेंडल करते हुए यह कहा जाये की देखो भई हमारा दामन तो पाक-साफ़ है और थोड़ी मजबूरियां तो सभी की होती हैं, वैसे ही हमारी भी हैं. तुम इसे प्रचारित-प्रसारित करों. लोग समझ जायेंगे और हम फिर से सीना चौड़ा करके चल सकेंगे.
———————————————————————————————————————————————-
लेकिन पत्रकारिता में एक पंक्ति होती है- ‘मीनिंग बिटवीन द लाईन’. जिन संपादकों ने मीटिंग में हिस्सा लिया और जिन्होंने बाहर बैठकर पी.एम् को वाच किया, वे बखूभी समझ रहे थे की पी.एम् और उनकी पार्टी क्या गेम खेल रहे हैं ? यही कारन है की किसी ने उन्हें दमदार अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री कहा तो किसी ने उन्हें गूढ़ राजनीतिक प्रधानमंत्री कहा. निष्कर्ष रूप में जो बात खुलकर सामने आई, वह यह की कुल मिलाकर सत्ता पक्ष ने अपने को दूध का धुला न सही साफ-सुथरा बताने की जद्दोदहद के चलते ही पी.एम् निवास पर इस मीटिंग का आयोजन किया था.
———————————————————————————————————————————————
कई संपादकों को उन्हें कक्षा के बच्चो की तरह हेंडल करना भी बुरा लगा लेकिन वे यह नहीं समझ रहे थे की इसके पीछे भी तो सरकार की विवशता ही थी. यदि संपादकों को खुला छोड़ दिया गया होता तो क्या पी.एम्. से केवल क्रमवार एक-दो प्रश्न ही पूछते ? और फिर इस बात की क्या गारंटी थी की वे बाल की खाल नहीं निकालते, जो की उनके पेशे की दरकार है और शायद जनता की अपेक्षा भी. बहरहाल यही कहा जाना चाहिए की सरकार की इस मजबूरी में पैर और कुल्हाड़ी दोनों ही सरकार के ही थे. खुद को मजबूरियों का लबादा ओढ़ाकर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती है. यदि गठबंधन इतनी बेशर्मी का शबब बन रहा ही तो इस प्रथा को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है ?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh