“वेलेंटायींन-डे: एक छोटी-सी लव स्टोरी -Valentine Contest”
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१२ फरवरी को निगाहें मिली और १४ फरवरी को किसी रेस्टोरेंट में काफी और एक अदद तोहफे गुलाब के फूल या ग्रीटिंग कार्ड के साथ प्यार का इज़हार, यही है वेलेंटायींन-डे का प्यार ! जी हाँ, वेलेंटायींन-डे का प्यार यही है. जब से हमारे देश में ये इसने पैर पसारे है, तब से यही अधिक हो रहा है. मुझे याद है, करीब ३ साल पहले मेरा एक परिचित इसी १४ फरवरी के दिन करीब ३ बजे मुझे फोन कर कहता है- “और भाई साहिब क्या हाल हैं ? कहाँ हो आप ?” दोनों ही प्रश्नों का मैंने उत्तर दिया. जिस पर उसने कहा- “अरे ! भाई साहिब कहाँ बैठे हो, भाभी जी को ले कर किसी रेस्टोरंट में जाओ.” वह स्वयं अपनी महिला मित्र के साथ उस समय किसी रेस्टोरेंट में ही था. मैंने टालते हुए बात समाप्त की. मै उस समय अपनी दिहाड़ी पर था. क्या इस प्रकार के ‘डे’ का कोई मतलब है ? ———————————————————————————————– प्यार की परिभाषा इस ‘डे’ की परिभाषा से अलग है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. लेकिन बावजूद इसके क्या वह प्यार होता है ? किशोरावस्था में खेलते-कूदते हमें न जाने कितने लड़के/लड़कियों से आकर्षण होता है. इसका ये मतलब तो नहीं की ये सब प्यार होता है. ———————————————————————————————– मुझे मेरे एक मित्र का वाकया याद आ रहा है. कुछ ख़ास होने के बाद भी वह न जाने मुझसे क्यों शेयर किया करता था. उसे भी आकर्षण हुया और परिवार वालों की तरफ से शादी की बात भी चली थी. लेकिन आज दोनों ही अलग-२ परिवार बन चुके हैं. मित्र को एक ओर उसकी सादगी की बानगी ने आकर्षित किया तो दूसरी ओर उसे पाने के लिए कोई गलत कदम उठाने के बारे में सोचना भी उसके लिए स्वप्नवत था. उसकी नज़र में वह हर मामले में उससे ऊँचा दर्जा रखती थी. मित्र ने उसे पाने की अपनी आरज़ू का ज़िक्र खुद और खुदा से ही किया. सुनसान जगहों पर उसे पाने के लिए खुले आसमान के नीचे उस खुदा से जोर-२ से चिल्ला कर उसे मांगता था. ———————————————————————————————– अचानक उस लड़की की जीवन शैली में बदलाव आया और वह चमक-दमक में खुद को रंगने लगी. उसे भी किसी ने आकर्षित कर लिया था. मित्र ने उस लड़के से दोस्ती कर ली. अपनी अपने दिल में दबाये वह उसके दिल की सुनता रहता था. वह विचलित नहीं होता था. असल में उसकी नज़र में प्यार की परिभाषा कुछ और थी. क्या आप उसके दर्द का अंदाज़ा लगा सकते है ? वह पहले खुद को उसके काबील बनाना चाहता था, वह भी खुद के नज़रिए से. उसके नज़रिए की तो बात ही बाद की थी. मित्र का मानना था कि हम जिसे प्यार करते हैं उसे हम पर गर्व होना चाहिए, शर्म नहीं आनी चाहिए. कुछ लोगों का सूत्र होता होगा- ‘प्यार और जंग में सब जायज है’ लेकिन उसका नहीं. उसकी जज़र में जंग में वार सीने पर होना चाहिए और प्यार में प्यार दिल से, इमानदारी से और सच्चा होना चाहिए. वह अपनी ही नज़र में उसके काबिल नहीं बन सका, तो उसकी नज़र का सामना कैसे कर पाता ? वह कहता था कि उसे रुसवा करने से तो अच्छा हुआ की मैंने अपनी आरज़ू अपने दिल में ही दफन कर दी. उसका कहना था कि उसे कोई हक नहीं बनता है की वह अपनी आरज़ू के लिए अपनी नाकिबिलियत को किसी पर जबरन थोप दे. ———————————————————————————————– पता नहीं यदि वह लड़की उसके जीवन में आती तो वे दोनों कितना खुश रहते लेकिन आज ये सब याद करके मुझे ख़ुशी होती है की उसने अपनी आरज़ू के लिए अपने को किसी पर थोपा तो नहीं. आज वह एक सामान्य जीवन बिता रहा है. मुझे गर्व है की उसने अपनी तमन्ना के चलते किसी ‘डे’ विशेष की आड़ में किसी को रुसवा नहीं किया. त्याग और बलिदान की भावना से किया प्यार ही सच्चा प्यार हैं.
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