Menu
blogid : 580 postid : 1526

“वेलेंतायींन-डे का ‘प्यार’ – Valentine Contest”

Proud To Be An Indian
Proud To Be An Indian
  • 149 Posts
  • 1010 Comments

१२ फरवरी को रास्ते में या बस-टेम्पो में निगाहे मिलीं और १४ फरवरी को किसी रेस्टोरेंट में काफी और एक अदद तोहफे (ग्रीटिंग कार्ड) के साथ प्यार का इज़हार. यही है वेलेंतायींन-डे का ‘प्यार’. जी हाँ, वेलेंतायींन-डे का प्यार यही है. जब से हमारे देश में इसने पैर पसारे हैं, तब से यही अधिक हो रहा है. मुझे याद है करीब ३ साल पूर्व मेरा एक परिचित मुझे इसी १४ फरवरी के दिन फोन कर कहता है- “और भाई साहब क्या हाल है ? कहाँ हैं आप ?” दोनों प्रश्नों का मैंने उत्तर दिया. जिस पर उसने कहा- “अरे ! भाई साहब कहाँ बैठे हो, भाभी को ले कर किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में जाओ, काफी-साफी पियों, मजे करो, आज वेलेंतायींन-डे है.” वह स्वयं अपनी महिला मित्र के साथ उस समय किसी रेस्टोरेंट में था. मैंने टालते हुए बात समाप्त की. मै उस समय अपनी दिहाड़ी पर था.
—————————————————————————————————————————————–
मुझे नहीं लगता की हमारे लिए इस प्रकार के ‘डे’ का कोई महत्तव है. मै नहीं समझता हूँ की ‘प्यार’ शब्द की परिभाषा इस वेलेंतायींन-डे वाले प्यार की परिभाषा से मेल भी खाती है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. लेकिन बावजूद इसके वह प्यार नहीं होता है, यह भी सत्य है. किशोरावस्था में न जाने कितने युवक-युवतियों को एक-दूसरे के प्रति आकर्षण हो जाता है और वर्तमान समय की बात करें तो करीब हम उम्र के महिला-पुरुष को एक-दूसरे से कहीं न कहीं आकर्षण हो रहा है. तो क्या ये सभी कुछ ‘प्यार’ है ? बहुत से मामलों में आकर्षण एक तरफ़ा होता है. जिस स्वयं आकर्षित हुआ व्यक्ति भी प्यार नहीं समझता है. क्योंकि इसमें दूसरे पक्ष की सहमती ही नहीं होती है.
——————————————————————————————————————————————–
लोगों में ऐसी बातें खुलने पर स्पष्ट कहा जाता है की वह तो एक तरफ़ा प्यार था. या फिर उसने तो ऐसा कदम एक तरफ़ा प्यार में उठा लिया. लेकिन मै आपको यहाँ ये बता दूं की यही तो प्यार है. एक तरफ़ा है लेकिन फिर भी प्यार है. दूसरा व्यक्ति पहले के प्रति आकर्षित नहीं है लेकिन पहला फिर भी उससे प्यार कर रहा है. उसे चाह रहा है. दूसरा उसे भाव नहीं दे रहा है लेकिन पहला फिर भी उसके दीदार को लाख जतन कर रहा है. वह उसे रिझाने में सक्षम नहीं है, लेकिन फिर भी अपने को उसके प्रति आकर्षित होने से वह रोक नहीं पा रहा है. यही तो प्यार है. जो रोके न रुके, वही तो प्यार है. जो अपने आप हो जाये, वही तो प्यार है. अरे ! जो सोच-समझ कर किया जाये, रोके से रुक जाये, समझाने से समझ जाये, वह प्यार कैसे हो सकता है ? ऐसे में इस एक दिन भला सोच-समझ कर किसी से अपने प्यार का इज़हार भला प्यार कैसे हो सकता है ? प्यार के लिए कोई दिन-तारिख नहीं होता है. लेकिन यहाँ तो तारिख तय है. सोच-समझकर तो दुकानदारी होती है. दुकानदारी में अधिक से अधिक और घटिया से घटिया माल अधिक मुनाफे में बेचना सोच-समझकर ही संभव हो सकता है.
————————————————————————————————————————————-
सोचिये ओबामा की भारत यात्रा के बारे में. क्या वह भारत के प्रति उनका प्रेम था ? नहीं. वह सोची-समझी यात्रा थी. कुछ प्राप्त करने की चाहत भरी यात्रा. प्रेम की आड़ में झूठा हक जताकर अपनी झोली जबरन भरवाने वाली यात्रा. उनका और उन जैसे तमाम देश मंदी का शिकार हैं. फिर राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने अपने बेरोजगारों को रोजगार देने का वायदा जो किया था. उन्ही सबको पूरा करने की जुगत में करोड़ों के खर्च पर थी वह शाही यात्रा. जिसे व्यापारीक यात्रा कहना उचित होगा. इसी प्रकार हमारे इस सूफी-संतों के देश में प्रेम की आड़ में वेलेंतायींन-डे का खेल चल रहा है. इसे प्रेम का प्रतीक दिवस बताया जाता है, लेकिन यह है व्यापार का प्रतीक दिवस. वेलेंतायींन-डे को प्रोमोट करने वाले कुछ लोग, कुछ संस्थाए आदि ये कहती हैं की प्रेम को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता है, ये हर देश, काल के परिप्रेक्ष्य में एक जैसा है, वेलेंतायींन-डे तो केवल प्रतीक है. इसे प्रोमोट कर प्रेम को बढ़ावा दिया जाता है. साथ ही ये भी की ये कोई अनुचित कदम नहीं है. लेकिन यही कहा जाना चाहिए की एक पर्दा है और परदे को बढ़ाया जा रहा है, खुद की आँखों पर भी और अन्यों की आँखों पर भी. वेलेंतायींन-डे को वैश्विक प्रेम, शांति और सद्भाव बढ़ाने में मददगार साबित किया जा रहा है. समझ नहीं आ रहा है इतने सालों से वेलेंतायींन-डे मनाया जा रहा है फिर भी भारत पाकिस्तान की दूरी कम नहीं हो रही है. अमेरिका की दादागिरी वैसे ही चल रही है. चीन की आँखों में आज भी दोगलापन है. तमाम खाड़ी देश आज भी बदहाल है. इस देश की बात करे तो आज भी हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई पीठ पीछे एक-दुसरे को कम ही बताते हैं. आज भी यहाँ जाति-धर्म सबसे गर्म विषय होते है. धर्म के नाम पर हम अपने लंगोटिया यार को भी मारने को तैयार हो जाते हैं. इस प्रेम से गरीबी दूर नहीं हो रही है. महंगाई कम नहीं हो रही है. देश की सामाजिक समस्याओं में ये वेलेंतायींन-डे का प्रेम किसी भी प्रकार से मददगार साबित नहीं हो रहा है. फिर किस तरह यह वैश्विक प्रेम, शांति और सद्भाव बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है ? इस देश में तो हर सुबह बच्चे अपने मात-पिता को सलाम और प्रणाम करते हैं, पैर छूते हैं, आशीष लेते हैं. यहाँ भला एक अदद फादर्स-दे या मदर्स-डे की क्या आवश्यकता है ? यहाँ तो एक-दुसरे को चाहने वाले चौबीसों घंटे प्रेम कर सकते है, फिर एक अदद वेलेंतायींन-डे का क्या औचित्य है. बाज़ार में तो व्यापर होता है, प्यार नहीं. प्यार तो दिल में होता है, आत्मा में होता है. इसे अभिव्यक्त करने की जरुरत नहीं होती है, यह तो स्वतः अभिव्यक्त हो जाता है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh