करीब एक दशक से हमारे देश में वेलेंटायींन-डे प्रतिवर्ष मनाया जा रहा है. वेलेंटायींन-डे को भले ही प्रेम का प्रतीक दिवस बताया जाता है, लेकिन ये कटु सत्य है की यह परंपरा भारतीय नहीं है. वेलेंटायींन-डे एक पाश्चात्य अवधारणा है. पाश्चात्य देशों में प्रेम नहीं है, ऐसा कहना तो न्यायसंगत नहीं होगा लेकिन जिस ‘प्रेम’ शब्द को हम वेलेंटायींन-डे के साथ जोड़ते हैं, निश्चित ही उसके गहन मायने इस दिवस के साथ मेल नहीं ख्हते हैं. आखिर क्या कारन है की प्रतेक वर्ष इस दिवस का इस देश में काफी लोग विरोध भी करते हैं ? आखिर प्रेम से किसी को क्या बैर होता है ? आज विदेशों की तर्ज पर हम कितने ही दिवस मन रहे हैं. वहीँ इसी देश में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में फर्क हम भूलते जा रहे हैं. क्या ये ‘प्रेम’ के कारण हो रहा है ? ‘प्यार’ तो जोड़ने का काम करता है, तोड़ने का नहीं. फादर्स-डे, मद्देर्स-डे, रोज-डे एवं वेलेंटायींन-डे आदि-२ कितने ही दिवस हम विदेशों की नक़ल करने की खातीर ही अनुसरित किये बैठे हैं. इन दिवसों का हमारे देश, संस्कृति और मूल्यों के सन्दर्भ में कोई औचित्य नहीं है. —————————————————————————————————————————— ‘प्रेम’ शब्द एक गहन अर्थ लिए हुए है. मीरा और राधा ने भी तो श्री कृष्ण से प्रेम किया था. प्रेम तो हनुमान का भगवान् राम से भी था. देश प्रेम पर खुद को मिटा देने वालों का इतिहास गवाह है. वेलेंटायींन-डे वाला प्रेम असल में बाजारवाद का प्रतीक है. ये अपने साथ लाया है विदेशों का आकर्षण और ऊपरी दिखावा. यही कारन है कि हमारे देश में वेलेंटायींन-डे का बहुत अधिक समर्थन नहीं होता है. कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ही सही, उसका विरोध करते हैं. और हर साल कि बात होती है. किसी वर्ष अधिक विरोध तो किसी वर्ष कम. —————————————————————————————————————————— वेलेंटायींन-डे के नाम पर तमाम प्रचार-प्रसार मद्ध्यमों को अपना-२ स्थान भरने में खासी आसानी होती है और बाजारी लाभ मिलता है, सो अलग. यही कारन है कि महीनों पूर्व ही इसकी बाजारी तैयारी शुरू हो जाती है. आखिर सेक्स के बढ़ते प्रचलन वाले समय में एक युवक-युवती के चोंच से चोंच मिलाने और फूल या गिफ्ट देकर या फिर एकांतवास करके उसके इज़हार को ‘प्रेम’ कैसे कहा जायेगा ? विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी वाले देशों में भारत अग्रणी है. करीब सवा अरब कि आबादी वाले इस देश में यदि युवाओं कि आबादी को कुल आबादी का आधा भी अंकन जाये तो लगभग ६० करोड़ कि आबादी से इस एक दिन बाज़ार को कितना मुनाफा होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. आज भारत विश्व में एक बड़े बाज़ार के रूप में देखा जाने लगा है. ओबामा की भारत यात्रा को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. उनका प्रयोजन आखिर क्या था ? यही कारन है कि इस देश में पाश्चात्य शैली वाले तमाम प्रकार के दिवसों कि बाढ़ सी लायी और प्रचारित एवं प्रसारित कि जा रही है. —————————————————————————————————————————— ‘प्रेम’ तो त्याग और बलिदान का प्रतीक होता है. मोहब्बत किसी को रुसवा करने का नाम नहीं है. वेलेंटायींन-डे मनाकर क्या हम अपने प्रेम को सरे बाज़ार रुसवा नहीं करते हैं ? क्या ये वैसा ही नहीं है, जैसे की किसी समय में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध रात के अँधेरे में और बंद कमरे में केवल वैवाहिक वयस्कों के लिए होता था, जो कि आज खुले आम, दिन के उजाले में होने लगा है ? प्रेम तो किसी को भी किसी से भी हो सकता है. लेकिन इसे युवक-युवती तक सीमित करके इसे भुनाने की कवायद की जा रही है. क्योंकि बाज़ार में वही टिकता है, जो बिकता है. डिब्बा बंद अचार का विज्ञापन होता है, लेकिन माँ के हाथ के बने अचार का विज्ञापन नहीं होता है. पाव रोटी का विज्ञापन होता है लेकिन माँ या बीवी के हाथ की बनी रोटी का विज्ञापन नहीं होता है. प्रेम प्रसंग ६०-७० के दशक की फिल्मों में भी होते थे. पूरा गाना ख़त्म हो जाता था लेकिन हीरो-हिरोइन द्वारा एक-दुसरे को हाथ तक नहीं लगाया जाता था. वहीँ आज की फिल्मों में हीरो-हिरोइन के चिपकने से ही गाना शुरु होता है. —————————————————————————————————————————— प्यार तो इबादत है. सच्चे प्यार के इज़हार के लिए किसी दिन या तारिख का मुहताज नहीं हुआ जाता है. ये कैसा प्यार है, जो अवसर तलाशता है ? क्या इबादत के लिए हम दिन-तारिख का मुहताज होते हैं ? दिल से खुदा को याद किया, अपनी गलती कबूल कर ली, उसकी पनाह दिल ही दिल में मांग ली. बस हो गयी इबादत. मिल गयी उसकी पनाह. हो गए सारे गुनाह माँ. इसे प्रेम कहते हैं. “घर से मस्जिद है, बड़ी दूर, चलों किसी रोते हुए बचे को हंसाया जाये.” ये इबादत है, ये प्यार है. अतः यही कहा जाना चाहिए की वेलेंटायींन-डे जैसे दिवस खालिस बाजारवाद को बढ़ावा भर दे रहे है. ऐसे दिवस प्रेम के गहन अर्थ से कोसों दूर हैं. भारतीय परंपरा में प्रेम का आशय त्याग और बलिदान होता है. हमारी संस्कृति में प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए किसी दिन की जरुरत नहीं है. सच्चा प्यार और उसकी अभिव्यक्ति, दोनों स्वतः ही हो जाया करते हैं. वर्तमान युवक-युवती का पल भर का प्यार आकर्षण का परिणाम होता है, और इसीलिए ये आया-गया होता है. वर्तमान भारत के वैवाहिक जोड़ों के बीच तनाव और टूटते सम्बन्ध, एकल परिवारों को बढ़ाने की मानसिकता इस झूठे प्रेम की पोल-पट्टी ही खोलते दिखाई दे रहे हैं.
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