वह दिन कब आएगा, जब मेरे वतन के हर चौक पर तिरंगा चौबीसों घंटे लहराएगा ? तिरंगे पर सियासत होने लगी है. वतन एक है लेकिन वतन वाले कटे-कटे से रह रहे है. क्यों ? २६ जनवरी के दिन का बेसब्री से इंतज़ार है. इस दिन की महत्ता बताने की यहाँ जरुरत नहीं है. लेकिन वतन परस्ती पर सर्वे करने वाले कुछ लोगों को हो सकता है कि अपने सर्वे में पता चले इस दिन भारत आज़ाद हुआ था ! ये कोई नई बात नहीं है. —————————————————————————————————————————————- इस देश में हवा ही ऐसी चल रही है कि हमें राष्ट्र गीत और राष्ट्र गान में फर्क नहीं मालूम हो पाता है ! सवा अरब वाले इस वतन के चारों कोनों के अन्दर वतन एक ही है लेकिन कुछ है कि वतन परस्ती उन्हें रास ही नहीं आती. वे तो सियासत में इस कदर मशगूल है कि क्या बताएं. एक ही देश में एक ही देश के लोगों को अपने ही देश में वतन के झंडे को फहराने कि पूर्व घोषणा करनी पड़ती है, तो वहीँ एक मुख्यमंत्री को तिरंगे के फहराने से माहौल के खराब होने कि चिंता सताने लगती है. इससे बुरा और क्या हो सकता है? जब देश एक है, राज्य केंद्र के अधीन है, तिरंगे से सारे वतन को कोई परहेज़ नहीं है फिर माहौल को ख़राब करने वाला कौन है ? शायद मुट्ठी भर अलगाववाद का राग अलापने वाले ! इनकी चिंता मुख्यमंत्री को सताने लगी है. तिरंगा क्या आधिकारिक रूप से ही फहराया जा सकता है ? इस वतन के हर नागरिक का अधिकार है की वह तिरंगा फहरा सके. शर्त ये है की उसकी इज्ज़त में कमी नहीं आनी चाहिए. ——————————————————————————————————————————————- जब हर गली-कूचे, चौक पर माननीयों के होर्डिंग्स लगाये जा सकते है, तो क्या वतन के हर चौक पर तिरंगे को नहीं लहराया जा सकता है ? मुख्यमंत्री को चाहिए की वे मुट्ठी भर अलगाववादियों को काबू करें और उन्हें वतन परस्ती का पाठ पढ़ायें. न की किसी से ये कहे की यदि माहौल ख़राब हुआ तो वे जिम्मेदार नहीं होंगे. आखिर इस देश के कितने टुकड़े और होने बाकि है ? एक मुख्यमंत्री को ये शोभा नहीं देता की वह ऐसी बात करे. वे कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं और कश्मीर इस देश का अभिन्न अंग था, है और रहेगा.
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