एक बार फिर से पांच साल के बाद आया हिमाचल प्रदेश का लोकतांत्रिक उत्सव ‘चुनाव’ निबट चुका है. करीब महीने भर जबरदस्त सरगर्मियां रहीं. हर ओर किसी त्योहार-सी उत्सुकता देखने को मिली. प्रदेश भर में ग्राम पंचायतों और नगर निकायों के विभिन्न पदों हेतु आम चुनाव हुए. इस बार की स्थानीय संसद के चुनावी उत्सव में जो बात ख़ास थी, वह यह कि स्थानीय नगर निकायों के अद्ध्यक्ष का चुनाव सीधे आम जनता ने किया. लेकिन उससे भी ख़ास बात यह रही की इस बार राजनैतिक पार्टियों ने एक प्रयोग भी किया. वह यह कि इस निचली संसद का चुनाव पार्टी चिन्हों पर लडवाया गया. पार्टी का टिकट मिलना, और उस पर चुनावी समर में कूदना, दोनों ही अपने आप में रोमांचित करने वाला होता है. ————————————————————————————————————————————————– चुनावी माहौल में देखने में आया की स्थान-२ पर विभिन उम्मीदवारों द्वारा चुनावी कार्यालय खोले गए थे. इन स्थानों पर उम्मीदवारों ने अपने प्रचार-प्रसार के सभी साजो-सामान के साथ ही अपने सहयोगियों, सम्बन्धियों, मित्रों आदि के लिए जलपान, भोजन एवं बैठकी का भी पूरा इंतजाम कर रखा था. विभिन्न स्थानों पर देखने में आया की जैसे ही कोई व्यक्ति परिचित दिखाई देता, चुनावी कार्यालय पर तैनात लोग उसे अपने कार्यालय में बैठाते, उससे अपने उम्मीदवार के प्रचार-प्रसार बारे चर्चा करते, साथ ही उसकी खूब आव-भगत भी करते. चुनावी कार्यालयों ने उन उम्मीदवारों के एक ठिकाने को भी प्रदर्शित किया. जिन लोगों से उम्मीदवार के कडवे सम्बन्ध भी रहे, उनके साथ भी बड़ी विनम्रतापूर्वक सम्बन्ध इन चुनावी कार्यालयों में देखने को मिली. ————————————————————————————————————————————————- जो उम्मीदवार अपनी चुनावी पारी की पुनरावृत्ति में उम्मीदवार बने थे, और अपने कार्यकाल के दौरान वे लोगों को शायद ही उपलब्ध हो पते थे, वे भी चुनावी मेले में लोगों के बीच हँसते-मुस्कुराते, ऐसे दिखे जैसे उन्हें साधारण व्यक्ति से बहुत लगाव है. वह उनकी समस्याओं को सुनने और उन्हें दूर करने को चौबीसों घंटे तत्पर है. लोग भी समय निकाल कर अपने-२ उम्मीदवार के कार्यालयों पर कुछ समय अवश्य बीताते. इससे उम्मीदवार का प्रचार-प्रसार हो जाता तो वहीँ उनके साथ मधुर सम्बन्ध भी बनाने का खासा अवसर था. लेकिन जैसे ही चुनाव संपन्न हुए, सभी उम्मीदवारों ने अपने चुनावी कार्यालयों से अपना बोरिया-बिस्तर समेत लिया. किराये पर लायी कुर्सियां वापस लौटा दी गयीं. टेंट हटा लिए गए और कुछ समय के लिए किराये आदि पर लिए चुनावी कार्यालय बंद हो गए. कौन हारा, कौन जीता, या बात उतनी अहम् नहीं है, क्योंकि तयशुदा पदों पर उतने लोग तो आसीन हुए ही हैं. फिर वे चाहे जिस पार्टी विशेष के हों अथवा निर्दलीय हों. विचार योग्य तथ्य तो यह है की क्या चंद रोज लोगों के बीच हाथों को जोड़े, सिर को झुकाए, मुस्कुराता विनम्र चेहरा उसी शिद्दत से लोगों को कुर्सी पाने के बाद भी उपलब्ध हो पायेगा ? ————————————————————————————————————————————————– विचारने की बात तो यह है की क्या गलियों में हाथ जोड़कर वोट मांगने वाले लोग अब लोगों की समस्यायों को उसी शिद्दत से सुनेंगे ? सोचने वाली बात यह है की क्या एक आम आदमी का इन ख़ास लोगों से मिलना उसी प्रकार सुलभ हो पायेगा ? कुछ शंका हो रही है. आखिर क्यों न हो ? जिन लोगों ने कुछ सौ या कुछ हज़ार के सामान्य से वेतन वाली कुर्सी के लिए इतना ताम-झाम किया हो, लोगों के बीच असामान्य परिस्थियों में भी खुशमिजाजी का परिचय दिया, गलियों-मोहल्लों में कई-२ चक्कर लगाकर माता जी, बाबू जी के संबोधन के साथ वोट मांगने का विनम्र निवेदन किया, क्या अब वे कुर्सी प्राप्ति के पश्चात नकदी की फसल नहीं काटेंगे ? क्या वे अपने खाते में समन्वय का कालम ठीक से ठीक नहीं करेंगे ? कुछ लोग कहेंगे की चुनावी समर में तो ऐसा करना ही पड़ता है. फिर सभी गलत थोड़े ही होते है ? जो लोग चुन कर आये है वे जनता की सेवा करेंगे. उनसे पूछना चाहता हूँ की ‘घर फूंक कर तमाशा देखना’ आखिर किस प्रकार की समाज सेवा को उत्सुक करता है ? ———————————————————————————————————————————————— ये बताने वाली बात नहीं है कि इस देश में चुनावी मेले को भुनाया जाने लगा है. चुनावी कार्यालयों से सामान्य जलपान, चाय-काफी और भोजन के साथ ही वोटों को खरीदने के लिए नोट और शराब कि देसी-विदेशी बोतलों कि अन्धादुन्ध बंदर बांट हुयी है. क्या इससे समाज सेवा को ऊर्जा मिलेगी ? निश्चित ही नहीं. साम-दाम-दंड-भेद अपनाकर जिन लोगों ने कुर्सी प्राप्त की है, वे पहले तो उसे निचोड़ेंगे ही, इसमें कोई शंका नहीं है. तब क्या यह कहना अतिश्योक्ति होगी की अब इन चवन्नी छाप समाज सेवकों के पीछे जनता को अपने अठन्नी-चवन्नी के कार्य के लिए भी दिन दूना और रात चौगुना दौड़ना पड़ेगा. उसमे भी तुर्रा ये की यदि आप जान-पहचान वाले निकले तो ही आपके काम होंगे अन्यथा आपको उनके किसी चमचे से उनकी मान-मनौवल ही अधिक करवानी होगी.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments