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मद्ध्यम मार्ग की तलाश …

Proud To Be An Indian
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हिमाचल प्रदेश के किसान बंदरों के उत्पात से खासे pareshaan हैं. सरकार के सामने प्रश्न यह है की अपनी कुर्सी के चलते हनुमान की सवा तीन लाख की वानर सेना को बचाए या फिर ९ लाख से अधिक किसान वोटरों को ? बंदरों को देखते ही गोली मरने के आदेश है. फिलहाल २३ दिसंबर तक चलने वाले ‘देखते ही गोली मारो’ अभियान के खिलाफ आवाजे तेज हो रही है. जहाँ देवी-देवता की अनुमति के बिना पत्ता तक नहीं हिलता, वहां के लोग अपने पेट की आग के चलते विद्रोह पर उतर आये है. जब बंदरों के उत्पात से फसलों को बचने के सारे सरकारी उपाय नाकाम हो गए तो किसानों ने स्वयं ही बन्दूक उठा ली. प्रश्न यह उठ रहा है की क्या ऐसे हथकंडे से इस समस्या का ठोस हल निकल पायेगा ?
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हिमाचली किसानों के पास खेती जीविका का मुख्य और गौण साधन है. हिमाचल चूंकि पहाड़ी राज्य है तो ऐसे में यहाँ के किसानों के पास अन्य साधनों के रूप में सामान्यतया कोई विकल्प है भी नहीं. पिछले चुनाव में भी बंदरों का उत्पात एक मुख्य मुद्दा था और इस बार भी. क्या कारन है की पूरे कार्यकाल के दौरान भी इस समस्या का कोई ठोस हल नहीं निकल सका ? जंगली जानवरों और बंदरों के उत्पात से वार्षिक ५०० karod रुपये से अधिक की फसलों के नुक्सान से इस पहाड़ी राज्य की आर्थिकी पर भी असर पड़ना लाजिमी है. कुछ एक हल के रूप में बंदरों की नसबंदी करना, उन्हें जिला बदर करना जैसे फार्मूले भी अमल में लाये गए लेकिन समस्या जस की तस. kendra से गुहार लगायी लेकिन कुछ नहीं हुआ. विदेश भेजने के प्रस्ताव आये तो कानूनी बंदिशे आ पड़ीं. किसानों के गुस्से को देखते हुए उन्हें उत्पाती जानवरों को maarne के parmeet देने पड़े.
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बंदरों या जंगली जानवरों से इंसानी इलाकों में समस्याएं इस देश भर की कहानी हैं. उत्पाती बंदरों से हिमाचल ही नहीं पूरे देश में समस्या है. दिल्ली तक इसका स्वाद ले रही है. ऐसे में प्रश्न उठता है की जानवर इंसानी इलाकों में धावा आखिर क्यों बोल रहे है ? प्रदेश में chunaavi माहौल है, और समस्याओं से निपटने के लिए नेता type हल औने-पौने दामों पर दिए जा रहे है.
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मै इस मंच के प्रत्येक सदस्य और समस्त पाठकों को इस समस्या से निबटने के लिए सुझाव हेतु आमंत्रित करता हूँ, जिससे की एक मानवीय हल निकल सके.

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