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तो क्या अब वास्तव में ब्लेक मनी वापस आ जाएगी ?

Proud To Be An Indian
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हाल ही में समाचारों में पढ़ने को मिला कि संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन से लौटे संसदीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल भाजपा नेता शांता कुमार ने दावा किया है की स्विट्जर्लेंड अपने बैंकों में जमा ब्लेक मनी लौटाने को तैयार है, लेकिन केंद्र इसे वापस लेने के लिए पहल नहीं कर रही है. उन्होंने स्विस बेंकों में जमा करीब ७० लाख करोड़ की भारी भरकम ब्लेक मनी को वापस लाने के लिए तुरंत करवाई की मांग की है. उन्होंने बताया की इस सम्मलेन में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी चर्चा हुयी. सम्मलेन में स्विस प्रतिनिधि ने बताया की उनके देश की सरकार ने अपने यहाँ के बेंकों में जमा विदेशी ब्लेक मनी को लौटाने के लिए क़ानून बना दिया है. अब सम्बंधित देशों के राजनैतिक कर्ता-धर्ताओं को इस पैसे को वापस पाने के लिए निर्णय करना होगा. कई देशों ने तो पैसे वापस लेने की कार्रवाई शुरू भी कर दी है. शांता कुमार ने आरोप लगाया की साल २००३ में भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र के सम्मलेन के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने हस्ताक्षर तो कर दिए, लेकिन उस पर अभी तक अमल नहीं किया. जब उनसे यह पूछा गया की केंद्र में एनडीए सरकार थी तब इस प्रस्ताव पर गौर क्यों नहीं फरमाया गया तो उनकी दलील यह थी की जब प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हुए तब एनडीए सरकार जाने वाली थी.
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यह तो रहा सारा माजरा, ब्लेक मनी और उस पर हमारे कर्ता धर्ताओं के रुख का. अब आते हैं मुद्दे की बात पर. जिस देश के बेंकों में ब्लेक मनी जमा है, उसने तो कानून बना दिया की जिस-२ देश का पैसा है, वह उसे वापस लेने की कार्रवाई शुरू करे. लेकिन आपको क्या लगता है की गरीबों की छाती पर मूंग दलकर की गई काली कमाई का काला पैसे देश के हित में वापस आ पायेगा ?
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स्विस बेंको में जमा करीब ७० लाख करोड़ की भारी भरकम राशी उसी भारत देश के चंद गिने-चुने लोगों की है, जिसके ७० फ़ीसदी से भी अधिक लोग अपना प्रतिदिन का गुजारा मात्र २० रुपये पर करने को विवश हैं. वैसे तो उम्मीद पर दुनिया कायम है और सकारात्मक सोच आगे की ओर ले जाती है लेकिन ये जानते हुए की हमाम में आप या हम नहीं बल्कि आप और हम दोनों ही भरपूर नंगे है, कैसे उम्मीद करनी चाहिए की अपनी भावी ऐस के लिए स्विस बेंकों में बचा कर रखे धन को आप और हम दोनों ही भारत के गरीब, भूखे व नंगों के विकास के लिए वापस लाने को तैयार हो जायेंगे ?
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आमतौर से कुर्सी चार पायों की होती है लेकिन आजकल के भारत की अधिकांश सरकारें गठबंधन रुपी लूली-लंगड़ी, अंधी-बहरी बैसाखियों को जोड़कर जो कुर्सी तैयार कर रही हैं और फिर उस पर भारत नामक लोकतंत्र की सरकार चल रही है, ऐसे में सोच सकारात्मक होती ही नहीं की स्विस बेंकों में जमा तमाम काला धन वापस आने दिया जायेगा. जब आप और हम दोनों ही नंगे हैं तो कौन भला किसे कहेगा की आप अपना काला रुपया इस देश के विकास के लिए वापस लाओ ? ये तो तभी हो सकता है की जब नैतिकता की शिक्षा ग्रहण की हुयीं, नैतिकता से सराबोर सरकार केंद्रीय सत्ता में आये और सबका धोती-लंगोट बिना किसी प्रस्ताव के ही खंगाल डाले की लाओ बेटा अंटी में जो कुछ छिपाए बैठे हो, इहा धरो. ये अकेले तुम्हारा पैसा नहीं है. ये तो इस देश के प्रत्येक नागरिक का बराबर का पैसा है. अरे ! अब ये तो कुछ-२ स्वप्नवत-सा लगने लगा है !
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अतः निश्सर्ष यही निकलता है की स्विस बेंकों में जमा काला धन किसी एक का नहीं बल्कि हमाम में भरपूर नंगे आपका और हमारा दोनों का है, जिसे सर्वसम्मति से वही रहने, और फलने तथा पूतों फूलने का आशीष ध्वनिमत से दिया जाता है ! मीडिया का हाल तो सभी जानते ही है. जहाँ भारी-भरकम विग्ज्ञापन मिला, वहीँ मुख्य खबर को भी पीछे धकेल दिया जाता है. बाकी गला फाड़कर स्वयं ही थक-हारकर चुप हो जायेंगे. फिर किसे रहेगी सम्मलेन की याद और कौन करेगा स्विस बेंकों में जमा काले धन का जिक्र.

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