सबसे पहले तो ऐसा शीर्षक देने के लिए आप सबसे माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन ये इस पोस्ट की जरुरत थी. ———————————————————————————————————————————————– आप सब जानते ही है- ‘फर्स्ट इम्प्रेसन इज लास्ट इम्प्रेसन, लेबल अच्छा होना चाहिय, माल नहीं’, अन्तिम ये की आपमें से अधिक से अधिक लोगो का ध्यान खींचना था. मै जानता हूँ की इस शीर्षक को पढ़कर आप इस पोस्ट को अवश्य पढेंगे और प्रतिकिर्या भी देंगे. इस पोस्ट को लिख कर हिट होने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, जोकि आज काफी लोग कर रहे है. ‘बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ’. बरबस ही याद आती है, अंग्रेजी शाशन की वह कूनीति जिसके चलते अंग्रेजों ने मंदिर और मस्जिद तक को नापाक किया, आज भी उसी कूनीति की बू आ रही है, फिर से इसकी कोशिश कुछ के द्वारा की जा रही है, दो लोगों तक भी सद्भावना का अपना सन्देश दे सकूं तो ये पोस्ट सार्थक है. ———————————————————————————————————————————————– आज ज्वलंत विषयों में यदि हाथों-हाथ लिया जाने वाला कोई विषय है तो वह है, ‘धर्म’. इस पर लिखा जाने वाला एक-२ पोस्ट हाथों-हाथ लिया जाता है और जम कर उस पर बहस होती है. बहस, चर्चा और तर्क-वितर्क तक बात रहती तो भी नहीं खलता लेकिन बात गाली-गलौच तक जा रही है. लेकिन विषय है ‘धर्म’. ————————————————————————————————————————————————– क्या है ‘धर्म’ ? मुझे लगता है की ‘धर्म’ मानव जीवन को एक दिशा प्रदान करने का साधन है, जो ईश्वरीय देन है. इसका सदुपयोग तो यही होता की मानव बिना बहस के इसको आत्मसात करता और अपने जीवन को इससे दिशा देते हुए इस इहलोक से परलोक की सुन्दर तैयारी करता. ————————————————————————————————————————————————– लेकिन आज हो क्या रहा है हम एक-दुसरे के धर्म पर ऊँगली उठा रहे है. परिणामस्वरूप अपने जीवन में विष घोल रहे है. जो लोग दुसरे के धर्म को नीचा दिखा रहे है या फिर ‘धर्म’ में कमिया निकाल रहे है, वे निश्चित ही स्वयं अपने ‘धर्म’ से ही कोसो दूर है. उन्हें न तो अपने धर्म की जानकारी है और न ही दुसरे की. सस्ती लोकप्रियता पाने की इच्छा इस बुरे काम को और हवा दे रही है. ————————————————————————————————————————————————- ईश्वरीय ग्रंथो में जो कुछ भी है, आज हर कोई अपने-२ स्तर से उसका विश्लेषण कर रहा है. क्या ये ठीक है ? इन ग्रंथों में संग्रहीत तमाम बातें अपने आप में पहले ही विश्लेषित है, हमें तो उनको आत्मसात करना है. उन पर अमल करना है. जो लोग ये कह रहे है, की इसका तो फलाना अर्थ है ढीमकाना अर्थ है, निश्चित ही वे गुमराह हो रहे है और दुसरे को भी कर रहे है. ये सारी सृष्टि फूलों के एक बाग़ की तरह इश्वर द्वारा बनायीं गई है, जिसमें तरह-२ के फूल है. सबकी अपनी अलग खुशबू और महत्ता है. ———————————————————————————————————————————————— जो लोग कहते है की गुलाब ही अच्छा है, निश्चित ही वे व्यापारी अधिक है क्योंकि गुलाब की अधिक मांग के कारन जाहिर है की वे गुलाब ही उगायेंगे. अलग गुलाब की ही बगिया बनाना पसंद करेंगे. बहुत से फूल है, जो काँटों से रहित है. ————————————————————————————————————————————————- “नफरत जो सिखाये वो धरम तेरा नहीं है, इंसा को जो रौंदे वो कदम तेरा नहीं है.”
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