‘चमचा’ शब्द बहुत ही आम है और खास भी. आम इस मायने में क्योंकि ये अपनी तुछत्ता को ही प्रदर्शित करता है और खास इस मायने में की कथित ‘चमचे’ अपनी चमचागिरी से केवल खुद का ही भला करते है. आप इसको कैसे देखते है ? मुझे लगता है की ये एक एसा प्राणी है, जो केवल और केवल अपना उल्लू सीधा करने की फ़िराक में ही रहता है. इसे किसी और से कुछ लेना-देना नहीं होता. अमूमन इसे हर जगह पाया जा सकता है. दूसरे की अनजाने में हुई छोटी-२ गलती को भी ये आसानी से भूना लेते है. ये इसी की फ़िराक में भी रहते है. ———————————————————————————————————————————————— खुद ये क्या करते है, क्या नहीं, इससे तो इन्हें सरोकार ही नहीं होता लेकिन दूसरा काम कर रहा है की नहीं इससे ये पूरा सरोकार रखते है. वास्तव में ये यह दिखाते है की ये वफ़ादारी कर रहे है, जिसका इन्हें रिवार्ड मिलेगा लेकिन असल में तो ये चमचागिरी ही करते है. इससे सभी का अहित ही अधिक होता है. कुछ एक ऐसे लोग भी होते है, जिन्हें इनकी चमचागिरी वफ़ादारी लगती है लेकिन ऐसा होता नहीं है. जो दूसरे का अहित करके खुद का भला करता हो, वह भला किसी की वफ़ादारी क्या करेगा. फिर चाहे वह कोई भी हो. ————————————————————————————————————————————————– इनकी एक खासियत भी होती है- बेशर्मी के शीर्ष तक जाने की, जो एक सामान्य व्यक्ति शायद ही कर पाए. इस बेशर्मी का ये पूरा-२ फायेदा उठाते है. जब कभी इन्हें ये महशूस होने लगता है की इनकी हरकतों के विरुद्ध कोई एक या कुछ लोग लामबंद हो रहे है, तो ये उन्हें बड़ी ही बेशर्मी से लल्लो-चप्पो करके पटाने की कोशिश करते है. फिर कुछ लोग इनके पटावे में आ भी जाते है. उन्हें तो बस थोडा सा मरहम चाहिए. वहीँ कुछ लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता है. कहते भी है- शरीर का ज़ख्म तो भर जाता है लेकिन दिलो-दिमाग पर दिया ज़ख्म कभी नहीं भरता है. आपके पास इन ‘चमचो’ की क्या कोई खास दवा है ?
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