Menu
blogid : 580 postid : 665

कुछ लोगों का दाल-भात रंग, धर्म, जात, वेश आदि के चूल्हे पर ही पकता है !!

Proud To Be An Indian
Proud To Be An Indian
  • 149 Posts
  • 1010 Comments

वैसे तो दुनिया भर में हम मानवों ने धुमा-चाकड़ी मचा रखी है. कहीं रंग के नाम पर तो कहीं धर्म के नाम पर, कहीं धन के नाम पर तो कहीं बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक के नाम पर. बहती गंगा में हमारे बीच के ही कुछ हाथ धोते है और सादी दाल को दाल फ्राई करके बेचते है. वह भी ऐसे तड़के के साथ जिसकी खुशबू (बू) दूर तलक जाय. फिर कुछ उपदेश देते है. कुछ राजनीती के नाम पर कू-नीति अपनाकर मलाई खाते है. बची हुई छाछ में से जब कुछ को वह भी नसीब नहीं हो पाती तो फिर इसके लिए संविधान में संसोधन करते है. कुछ बाकियों का नेतृत्व करते है और कहते है धर्म की रक्षा करो, आगे आओ. यह बात किसी एक धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं कही जा रही है बल्कि इस दुनिया के सभी लोगो के ऊपर लागू होती है. हम इंसानियत को पीछे छोड़ कर धर्म को बचा रहे है, उसकी रक्षा कर रहे है. जो लोग ये मानते है की जब बिना उसकी (ईश्वर) मर्जी के एक तिनका भी नहीं हिल सकता तो क्या एक व्यक्ति दुसरे का धर्म भ्रष्ट कर सकता है? क्या हमारी औकात है किसी को कुछ देने या किसी से कुछ लेने की? मै तो ये मानता हूँ की बिना उसकी (ईश्वर) मर्जी के एक तिनका भी नहीं हिल सकता. हम तो मुर्ख, नादान कठपुतलिया है, जो उसके इशारों पर नाचे जा रहे है? तो क्या भलाई इसी में नहीं की हम फिजूल की बातों को छोड़ कर वही करे जिसे करने के लिए हमें उसने (ईश्वर) इस सृष्टी में भेजा है.

एक दिन मेरे एक परिचित यानी मित्र, मुझसे मिलने आये, वे हिन्दू धर्म से है और एक धार्मिक शंस्था से जुड़े भी है. उनका वेश भी धार्मिक ही उन्होंने बना लिया है, माथे पर बड़ा सा तिलक आदि, आते ही बड़े प्रसन्न मुद्रा में मुझसे अभिवादन करते है और कहते है- “अस्सलाम वालेकुम”. मैंने जवाब दिया- “वालेकुम अस्सलाम”. उन्होंने फिर हँसते हुए कहा- “माथे पे तिलक है तो क्या अल्लाह सुनेगा नहीं?” अपने धर्म के प्रति कहीं ज्यादा गंभीर और मुझसे ज्यादा बुद्धिमान होने के बावजूद उन्होंने ऐसा कहा. क्या सच में भगवान्, अल्लाह, वाहे गुरु और गोड कहने भर से वो एक से अनेक हो जायेगा? नहीं बिलकुल नहीं. वह तो हम इंसान ही है, जो उसकी बात को नहीं समझ पा रहे है, और उसकी विविधता भरी इस रंगीन दुनिया में अमन-चैन से रहने की अपेक्षा लड़ झगड़ रहे है.

हम में से अधिकतर लोग ये बात जानते है और समझते है की रंग, धर्म, जात, वेश आदि तो विविधता के लिए है. फिर भी हम में से कुछ लोग अपनी मनमानी ही करते है. परिणाम हम सब जानते है. वैसे ये बात भी है की आम आदमी रंग, धर्म, जात, वेश आदि की बात न तो करता है और ही उसके पास इन झमेलों में पड़ने के लिए समय ही है. सीधे-२ यदि ये कहा जाये की कुछ लोगों का दाल-भात रंग, धर्म, जात, वेश आदि के चूल्हे पर ही पकता है. इसीलिए वे इन सबको छोड़ना ही नहीं चाहते. लेकिन उनकी ये दाल-भात अन्य लोगों पर कितनी भारी पड़ती है, ये हम सब से छिपा नहीं है.

“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्ता हमारा.”

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh