Menu
blogid : 580 postid : 269

(१ मई – विश्व मजदूर दिवस) – विकास युग में पिसता श्रमिक वर्ग

Proud To Be An Indian
Proud To Be An Indian
  • 149 Posts
  • 1010 Comments

दो दिन बाद यानी १ मई को विश्व मजदूर दिवस मनाया जायेगा. इस दिन दुनिया भर के श्रमिक जगह-२ एकत्र होते है और श्रमिक आंदोलनों के शहीदों को श्रद्धांजलि देते है. कुछ जगहों पर सभाओं का आयोजन किया जाता है तो कुछ जगहों पर श्रमिकों को जागरूक करने का काम किया जाता है. वास्तव में मई दिवस मजदूरों को शोषण से मुक्ति दिलवाने का आह्वान करता है. लेकिन वास्तविकता तो यह है की यह मई दिवस मात्र औपचारिकता भर रह गया है.

————————————————————————————————————————————————-

आज मजदूरों के दो क्षेत्र है- एक संगठित क्षेत्र और दूसरा असंगठित क्षेत्र. संगठित क्षेत्र के मजदूर जहाँ अपने अधिकारों आदि के बारे में जागरूक होते है और शोषण करने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद कर मोर्चा खोलने में सक्षम होते है, वहीँ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों में लगभग ९० फीसदी को ‘१ मई – विश्व मजदूर दिवस’ के बारे में भी पता नहीं होता है. ऐसे में इस ‘१ मई – विश्व मजदूर दिवस’ का क्या औचित्य रह जाता है ? आज खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का जमकर शोषण किया जा रहा है और इस काम में राजनीतिज्ञ, उद्योगपति, पूंजीपति, ठेकेदार और बाहूबली आदि सब मिले हुए है, क्या आप इससे इंकार कर सकते है ? उद्योगों का आधार ही जिन मजदूरों पर टिका होता है, आज उन्ही का जमकर शोषण किया जा रहा है. ठेकेदारी प्रथा के कारन आज मजदूरों को गाजर-मूली की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. छाछ मजदूरों में और मलाई के साथ गाढ़ा दूध ऊपर से नीचे तक के दलालों में बंट रही है. उद्योग में तय वेतन और भत्तों का काफी हिस्सा बीच में ही चट हो रहा है. श्रमिकों की सप्लाई कच्चे माल की तरह हो रही है. राज्य सरकारों के कानूनों को ठेंगा दिखाकर अथवा अधिकारीयों से मिलीभगत कर अनेक राज्यों के मजदूरों को एकत्र किया जाता है और फिर उनकी सप्लाई होती है. कई बार तो ठेकेदार ही मजदूरों के माई-बाप बन जाते है. सरकारी नियमों की धज्जिया उड़ाते हुए ये ठेकेदार तमाम अधिकारीयों की जेबें गरम करते है और मजदूरों के वेतन और भत्तों का काफी हिस्सा डकार जाते है. कंपनी द्वारा सीधी भर्ती करने तथा उनके प्रति अपने दायित्वों से बचने के लिए ही इस ठेकेदारी प्रथा का प्रचलन बढ़ा है, जो की सीधे ही श्रमिकों का शोषण है. यहाँ तक की श्रमिकों से १२ घंटें की हाड तोड़ मेहनत के बावजूद उनको साप्ताहिक अवकाश भी नहीं दिया जाता है. यदि कोई श्रमिक इनकी न मानने या छुट्टी लेने की बात करता है तो उसको इन ठेकेदारों द्वारा काम से निकाल दिये जाने की बात सुनने में आती है. इन ठेकेदारों तथा उद्योगपतिओं आदि को खाद पानी देने में अहम् भूमिका निभा रहे है श्रम निरीक्षक. वैसे तो श्रम निरीक्षकों की नियुक्ति सरकार ने श्रमिकों के हितों और उनकी उन्नति के लिए कर रखा है लेकिन महीने की मोटी-२ बंधी हुई रकम इनके दीन-ईमान को बेच रही है, क्या इससे इंकार किया जा सकता है ? संगठित क्षेत्र के श्रमिक तो किसी प्रकार से इन विसंगतियों पर पार पा लेते है, लेकिन असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है सिवाए इसके की वे चुपचाप अपना शोषण करवाते रहे. क्या छोटे संस्थानों में या फिर दुकानों, ढाबों आदि में ये श्रम निरीक्षक जाँच करने के लिए कभी जाते है ? क्या किसी श्रमिक से उसकी आप बीती पूछते है ? श्रम निरीक्षको के आशीर्वाद से बहुत से लोग/संस्थाएं श्रमिकों से अपनी शर्तों पर काम करवाते है, उन्हें मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं देते जिनमे काम की उचित जगह, साफ़ वातावरण, नियमित चाय-पानी, शौचालय की व्यवस्था आदि शामिल है. सरकार इसकी जाँच करवा ले, हकीकत पता चल जाएगी. कुछ इक्का- दुक्का को छोड़कर ये श्रम निरीक्षक केवल वहीँ जाते है जहाँ से मिठाई का आना बंद हो जाता है या फिर कोई नयी मछली आई होती है. अतः राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को संगठित करने की जरुरत है. ‘सूचना का अधिकार’ तथा ‘उपभोक्ता कानून’ की तर्ज पर श्रम निरीक्षकों पर नजर रखने के लिए एक नियामक की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे ये तय हो सके की श्रम निरीक्षक अपना कार्य ईमानदारी से कर रहे है. श्रम कानून भंग करने पर कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए. सरकारी न्यूनतम वेतन, सुविधाएं सभी प्रकार के अवकाश आदि के लिए सख्त रुख होना चाहिए.

————————————————————————————————————————————————-

‘१ मई – विश्व मजदूर दिवस’ एक औपचारिकता न बने, और कुछ ठोस निष्कर्ष निकले इसके लिए जरूरी है की हम गाल बजाना बंद करें. तभी समाज के इस निम्न वर्ग का भला हो सकता है, जो वास्तविक आधार है इस समाज का, इस देश का. जब तक देश और समाज के इस वर्ग का वास्तविक भला नहीं होगा तब तक कोई ताकत देश और समाज का भला नहीं कर सकती. उम्मीद पर दुनिया कायम है, अतः आशा की जानी चाहिए की आने वाले ‘१ मई – विश्व मजदूर दिवस’ पर हम मिलकर कुछ ठोस कदम उठाएंगे.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh