यदि आप आफिस का जिक्र करे तो आपके ज़ेहन में सामान्यतः क्या आएगा ? कोई वेल्ल सेटल्ड बिल्डिंग होगी. उसमे कई कमरे या आधुनिकतम तकनीक से पार्टीसन कर के कई अलग-२ चैम्बर बनाये गए होंगे. उसमें अलग-२ पद के अनुसार सब की व्यवस्था होगी. अनुशाशन होगा. लोग बड़े कायदे से आ कर अपना कार्य करवाते होंगे. मतलब पूरी दिनचर्या की एक व्यवस्थित तस्वीर, कुछ ऐसा ही. आफिस की कई श्रेणिया है. उच्च दर्जे का, मझले दर्जे का, निम्न दर्जे का. मेरा भी आफिस है और मै उसे ‘दिहाड़ी स्थल’ या ‘मजदूरी स्थल’ कहता हूँ. ये किस दर्जे में आता है, आप बाद में तय कीजियेगा. बॉस के साथ बैठे उनके मित्र, जो की एक कारखाने में प्रबंधक है, को एक बार अपने एक जूनियर से कहते सुना था की- “अबे यार तुम लोगों को अगर दिन में ३ झूठ बोलने को कह दो तो तुमसे नहीं होता है, हमें देखो दिन में कुछ नहीं तो कम से कम १०० झूठ बोलने पड़ते होंगे, तब जाकर कहीं काम चलता है.” दुकानदारी करते हुए जब मै अपने बॉस को देखता हूँ तो सोचता हूँ की अगर मै उनकी जगह पर होता तो क्या कर पाता ? कितने जतन करने के बाद एक अदद गाहक बड़ी मुश्किल से पट पाता है. निश्चित ही बॉस की कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति बहुगुणी होता है. बहुदृष्टि वाला होता है. लेकिन इतने गुणों के बाद भी कुछ लोग होते है जो बॉस टाइप लोगो को भी गच्चा दे जाते है. वे कोई और नहीं उनके खास, चिर-परिचित, नाते-रिश्तेदार, आदि होते है. वैसे तो ये सब घर की बातें होती है लेकिन अपना उल्लू सीधा करने वाले इसे आफिस तक ले जाने में कोई शर्म नहीं करते. ऐसे में बॉस तो बेचारे ही होंगे न ! खास, चिर-परिचित, नाते-रिश्तेदार, आदि से गाहक की तरह पेश नहीं आ सकते वर्ना रिश्तेदारी में तीखापन आ जायेगा और चुप रहेंगे तो चूना लगना तय है. जब से मैंने इन्हें ज्वाइन किया तब से देख रहा हूँ, बॉस का वही मुझे घिसा-पिटा निर्देश- “चाहे मेरे घर का ही क्यों न हो, जब तक मेरी परमिसन न हो किसी का काम नहीं करना है.” लेकिन जब ये खास, चिर-परिचित, नाते-रिश्तेदार, आदि उनके सामने से ही सीधे मेरे पास आकर अपना काम करवा, हाय- हेल्लो, नमस्ते कर चलते बनते है तो आप कल्पना कर सकते है की बॉस के दिल पर क्या गुजरती होगी. लेकिन गुस्सा आये तो किस पर निकाले ? घूम-फिर कर मै ही उनके कोप का भाजन बनता. एक दिन उनके मित्र का बेटा उनके सामने से ही सीधे मेरे पास आता है और अपना काम करवा, चलता बनता है. बॉस मुझ पर तन जाते है. मैंने कहा- वो तो कह रहा था की आपसे पूछ कर आया है, और फिर आप ही के सामने से तो वह आया था. बॉस आग-बबूला हो गए, बोले- “तेरा फ़र्ज़ बनता है की कोई आये तो तू पहले मेरे पास आकर मुझे उसकी जानकारी दे, लेकिन तू तो मुझसे भी ज्यादा यारी-दोस्ती निकालता है, लोग आते है काम करवाते है, बिना पैसे दिए चले जाते है, मै क्या गुरद्वारे में लंगर खाऊंगा ?” मै ठहरा दिहाड़ी मजदूर, बोला तो गई भैस पानी में. लेकिन बॉस को अभी तसल्ली नहीं हुयी थी, वे सारे वर्करों से सामने भी मुझे लताड़ने लगे, बॉस तो बॉस, उनकी मैडम सुभान अल्ला. खून के घूँट पी कर सहना पड़ा. दिहाड़ी का सवाल था. लेकिन अब मैंने सोच लिया था की अब कुछ करना पड़ेगा. अगले ही दिन मैंने कुछ पर्चे बनाये. एक पर लिखा- “कृपया शांति बनाये रखे, धन्यवाद.” दूसरे पर लिखा- “समय का ध्यान रखे, धन्यवाद.” तीसरे पर लिखा- “ग्राहकों से निवेदन है की सीधे हमारे पास आकर हमें शर्मिंदा न करे. अपने कार्य को पहले बॉस के संज्ञान में लाये. धन्यवाद.- आज्ञा से बॉस…फलाने…फलाने….” अगले ही दिन से नियम लागू कर दिया. बॉस ने जैसे ही देखा, उनके कलेजे में थोड़ी ठंडक पड़ी. अगर अन्दर से अन्य वर्कर भी मुझसे कुछ काम लेने की कोशिश करते तो मेरा जवाब होता- पहले बॉस की परमिसन ले लो. एक वर्कर जब बॉस के पास गया तो बॉस बोले- “अबे बाहर वालों को तो तू दनादन काम निकाल के दे देता है, और घर के काम के लिए ……” सभी लोग मुसकुराय, बात आई-गयी हो गयी. अगले दिन एक सज्जन पधारे और- “ग्राहकों से निवेदन है की सीधे हमारे पास आकर हमें शर्मिंदा न करे. अपने कार्य को पहले बॉस के संज्ञान में लाये. धन्यवाद.- आज्ञा से बॉस…फलाने…फलाने….” को देखते ही बोले- अरे यार ! इसके नीचे ‘संज्ञान’ की हिंदी लिखो…! अतः आप सभी से अनुरोध है की ‘संज्ञान’ की हिंदी बताये ताकि जल्द से जल्द मै अपनी दिहाड़ी स्थल पर भी लिख सकूं. देखिये ये जो हमारा भारत देश है वो विश्व गुरु है. हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है. हर साल हिंदी दिवस भी हम मनाते है. सरकारी जगहों पर सर्कार ने अंग्रेजी के साथ-२ हिंदी में भी काम करने की छूट दे रखी है. अब इतना सब कुछ मैंने आपको याद दिला दिया है. अतः मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की अब तो आप मुझे अवश्य बताएँगे- ‘संज्ञान’ की हिंदी.
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