मायावती का माया प्रेम मतलब उत्तर प्रदेश की भैस गई पानी में… !!!
Proud To Be An Indian
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कल्पना कीजिये की आपका पडोसी तो आंटे में नमक वाली रोटी खा रहा है और आप नमक में आंटे की रोटी खाने को विवस है. कैसा होगा वो मंजर? जरा कल्पना कीजिये. निश्चित ही दांत एक दुसरे से चिपक जायेंगे. बहुत कुछ इसी से मिलता जुलता हो रहा है उत्तर प्रदेश में. बसपा के २५ साल पुरे होने पर लखनऊ में पार्टी का जश्न समारोह हुआ तो मायावती जलते हुय बरेली को भूल गयी. जिस बरेली की चर्चा दिल्ली तक हो रही थी, उसकी चर्चा के लिए लखनऊ में समय नहीं था. पार्टी के जश्न समारोह में मायावती अपना गुडगान कर रही थी तो दूसरी ओर कसरत कराने वाले बाबा की बिना नाम लिए छीछालेदर करने में भी जुटी दिखाइ दी. बरेली में करीब ३०० करोड़ का नुक्सान होने की खबर सामने आ रही है तो वही बसपा के जश्न में भी भारी भरकम खर्च का खुलासा समाचारों से हो रहा है. हद तो तब हो गई जब जनता की प्रतिनिधि बताने वाली माया ने १००० रुपये के नोटों वाली करीब २० फुट की माला मंच पर पहन ली. पहले तो नोटों की माला के होने से ही इनकार होता रहा लेकिन बाद में पता चला की इसमें २१ लाख रूपए लगे है. कहाँ से आई ये नोटों की माला? किसने दिए इतने पैसे? पैसों की रसीद कहाँ है? पैसे पार्टी के है या फिर किसी ने माया को चढ़ावा चढ़ाया है? कौन है वो? पार्टी के समारोह में विधानसभा के अद्ध्यक्ष भी दिखाई दिए. उनका क्या काम था? मायावती का गुडगान इस कदर हो रहा था की लोगों के साथ ही साथ वहां उपस्थित यातायात पुलिस कर्मी भी नाच रहे थे. भले ही प्रदेश भर की यातायात व्यवस्था चरमराई हुई हो, क्या फर्क पड़ता है. यह वही उत्तर प्रदेश है जिसने देश को आधा दर्जन के करीब शीर्ष नेत्रितत्व दिया है. उत्तर प्रदेश की हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की यह देश का सबसे ज्यादा जनसँख्या वाला राज्य है. रोटी, कपडा और मकान इन तीनों का यहाँ अभाव है. राज्य में खाद्यान, बिजली, रोजगार की कमी है. राज्य के लोग रोजगार के लिए अन्य प्रदेशो में पलायन कर रहे है. दूसरी जगहों पर उनका शोषण हो रहा है. स्वास्थ्य की सुविधा दयनीय है. सड़कों की हालत देखते ही बनती है. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण सभी कुछ तो खस्ता हाल में है. विकास सूचकांक में यह प्रदेश फिसड्डी है. जिन दलितों के नाम पर मायावती राज कर रही है, उन्ही दलितों में करीब ५४ फीसदी आज भी निरक्षर है. प्रदेश की जनता के लिए विकास के कार्य हो या न हो लेकिन पार्टी के महान लोगो के साथ ही चुनाव चिन्ह की मुर्तिया प्रदेश भर में गली-२ में लगनी चाहिए. आखिर इतिहास को जो बदलना है. कैसी घटिया राजनीती है यह? ये लोग ऊपर वाले को क्या मुह दिखायेंगे? आने वाली पीढियों के लिए ये क्या कर के जायेंगे? क्या उत्तर प्रदेश की किस्मत में यही सब लिखा है? कहाँ है राज्य के पढ़े लिखे और क्रांतिकारी विचारधारा वाले लोग? क्या सबको सांप सूंघ गया है? क्यों नहीं मायावती से पूछा जाता है की मुलभुत सुविधाओं के अभाव वाले प्रदेश में आखिर किस अधिकार से वह यह निरंकुश शासन कर रही है? विकास कार्य में लगने वाले नोटों को किस अधिकार से माला बना कर पहना जा रहा है?
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