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आज भी बदतर क्यों है अधिकांश महिलाओ की दशा ?

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हमारी आजादी को बासठ वर्ष हुए है और ठीक से सुध आने, योजना बनाने, उसे अमली जामा पहनने में भी कुछ समय निकल गया, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. तब जाकर कहीं कुछ महिलाओ को होश आया की उनका तो शोषण हो रहा है, उनके अधिकार उन्हें नहीं मिल रहे है. उनके प्रति पुरुष प्रधान समाज का रवैया ठीक नहीं है. लेकिन विश्व के तमाम देशो में महिलाओ को बहुत पहले ही अपने हितो और अपने विरुद्ध अपराधो के बारे में बोध हो गया था. वे अपने अधिकारों के प्रति जहा जागरूक हुई, वही अपने खिलाफ होने वाले अपराधो के प्रति उन्होंने लड़ना भी सीखा. यही कारन है की विश्व के तमाम देशो में महिलाओ की स्थिति ठीक है. लेकिन हमारे देश में आलम ये है की अभी तक देश के सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओ को उनके अधिकार स्वरुप एक निश्चित अनुपात में जगह भी नहीं मिल पायी है. कई बार इसके लिए जद्दोजहद हुई. लेकिन इससे इंकार नहीं की भारत में महिलाये आज कई मामलों में पुरुषो की बराबरी कर रही है. बड़ी कंपनियो की कमान संभालने की बात हो या सीमा सुरक्षा की बात. देश की पंचायतो में उनका परचम लहरा रहा है.
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जब से हमारे देश में महिलाओ ने आसमान को छूना सुरु किया है तब से तो महिला दिवस के एक या दो दिन पूर्व ही इनके बारे में काफी चर्चा होने लगती है. मीडिया तमाम आंकड़ो के साथ प्रस्तुतीकरण करता है तो बुद्धिजीवी वर्ग और हमारे कर्णधारों की तरफ से महिला हितो के प्रति नरम रवैये में वार्ता होती है, आशा और धन्द्हस बंधाये जाते है. भावी उन्नति की आशा के साथ इस दिवस पर महिलाओ को समाज में समानता का अवसर देने और उनके प्रति होने वाले अपराधो को कम या समाप्त करने की बातें भी होती है. महिला जागरूकता के कारन तमाम संगठन अस्तित्व में है. जो महिलाओ के प्रति सक्रिय भूमिका निभा रहे है. इतने सब के बाद भी यह बात कचोटती है की क्यों आज भी अधिकतर महिलाओ की हालत बदतर है? क्यों यदि दशा में सुधार आता है तो चंद गिनी-चुनी महिलाओ के? क्यों महिलाओ की उन्नति बारे आंकड़ो की जादूगरी दिखाई जाती है?
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कौन है इसके लिए जिम्मेदार? खोखले वादे क्यों किये जाते है? और एक मुख्य सवाल यह की क्या स्वयं महिला वर्ग अपनी जात के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है? आँकरो की बात करे तो २००६-२००८ के बीच करीब दो लाख महिलाओ को योन हिंशा का सामना करना पड़ा. प्रतिदिन करीब १९० महिलय छेड़छाड़ और बलात्कार का शिकार होती है. २००६ में करीब १९३४८ बलात्कार के मामले प्रकाश में आये. २००७ में करीब २०७३७ और वही २००८ में करीब २१४६७ मामले बलात्कार के सामने आय है. यौन उत्पीडन के मामलो में २००६ में करीब ९९६६, तो २००७ में करीब १०९५० और २००८ में करीब १२२१४ मामले सामने आये. छेड़छाड़ की बात करे तो पिछले तीन सालो में २००६-२००८ के बीच करीब ११५७६४ मामले सामने आये है.
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आंकड़ो से स्पस्ट हो रहा है की वर्ष प्रति वर्ष महिलाओ के प्रति हिंसा में बढोतरी हो रही है. किसे दोस दिया जाना चाहिए? इतने वर्षो से महिला हितो के प्रति राजनीती करने वालो से पूछा जाना चाहिए की क्यों मामलो में कमी नहीं आई या ये समाप्त नहीं हो सके? महिला संगठनो में भी क्या औपचारिकता कम हो रही है? एक बार फिर आशा की जानी चाहिए की आने वाले समय में महिला दिवस अपनी औपचारिकता के खोल से बाहर आएगा और स्वयं महिला वर्ग अपने वर्ग के लिए इमानदारीपूर्ण नजरिया रखेगा. एक संपन्न और सक्षम महिला अपने अंतर्मन में झाँकेगी की क्या वह दूसरी मजलूम और असहाय महिला के प्रति ठीक वैसा ही रवय्या रखती है जैसा की वह स्वयं अपने लिए चाहती है?

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